रविवार, 26 जनवरी 2014


लालकिले से  (भाग-18)

                           हे, गणतंत्र के  एक अराजक मुख्यमंत्री                            -- -- हमारा गणतंत्र सदैव अमर रहेगा




णतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आए दो बयानों ने हमारे गणतंत्र पर मंडरा रहे अराजकता के खतरे की ओर संकेत किया है। यानी अपना काम बनाने  के लिए नेता किसी भी हद कर जा रहे हैं यानी अराजकता का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। यानी इशारा सीधा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर है। यहां हमने इन बयानों का संविधान की सीमा में खोजने की कोशिश की है।
१. लोकलुभावन अराजकता लोकतंत्र का विकल्प नहीं हो सकती                                                           -                                                                                               -प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति भारत गणराज्य
२. संविधान में यह कहीं नहीं लिखा की एक मुख्यमंत्री धरना नहीं दे सकता                                                                                                                                          - अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली राज्य
भीड़ अराजक ही होती है। उसे नियंत्रण में लाकर अनुशासित या भागीदार बनाने की प्रक्रिया का नाम है गणतंत्र या रिपब्लिक । एक प्रक्रिया के माध्यम से उसी भीड़ से से कुछ गण चुनकर उन्हें ही उस अराजक भीड़ पर शासन करने का जिम्मा दिया जाता है। यह प्रक्रिया है लोकतंत्र या डेमाक्रेसी। गणतंत्र की यह प्रक्रिया यजुर्वेद के श्लोक- गणानां त्वां गणपति गुं हवामहे---- में निहित है। यानी गणों का पति या स्वामी ही गणेश यानी लीडर होता है। यानी हम सभी शुभ कामों के पहले एक ऐसे गणपति या लीडर को पूजते हैं जो अराजकता को अनुशासन और शासन में बदलता है।
केजरीवाल ने धरने के दौरान कहा मैं अराजक हूं। यानी वे चुने जाने के बाद भी अभी भी स्वीकार करते हैं कि- हां मैं अराजक हूं। उनकी कार्यशैली को देखें तो उसका आधार ही लोक  लुभावन बाते हैं। यानी दोनों को मिला दें तो लोकलुभावन अराजकता अस्तित्व में आती है। यानी की महामहिम ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में केजरीवाल ने जनहितों की आड़ लेकर दिल्ली को  धरने के माध्यम से 32 घंटे बंधक बनाने और लोकतंत्र की
लोगों को बिजली बिल नहीं भरने के लिए प्रेरित करना, बिना पैसे दिए बिजली का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना, पूरे नहीं किए जा सकने वाले वादे करना, पुलिस को विद्रोह के प्रेरित करना, बिना अुनमति लिए धरना देना, निषेघाज्ञा तोडऩा और कौन सा गणतंत्र वाला बयान अराजकता का जीता-जागता नमूना है।
केजरीवाल ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर यह कहा कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि मुख्यमंत्री धरना नहीं दे सकता। उनका मतलब शब्दत: लिखी बात  की ओर ही है तो यह भी सवाल उठता है कि संविधान में कहीं यह भी नहीं लिखा है कि मुख्यमंत्री धरना दे सकता है। सवाल है कि क्या राज्य में कानून बनाने वाली सर्वोच्य संस्था विधायिका का प्रमुख कानून तोड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और केन्द्र सरकार को इसी बात पर नोटिस भी दिए हुए हैं।
अगर केजरीवाल जी जानना चाहते हैं कि उन्होंने धरना देकर संविधान को कैसे तोड़ा है तो भारत का संविधान खोलकर बैठ जाएं। भारत में कानून का शासन यानी रूल आफ ला को तोड़ा। भारत में रूल आफ यानी संविधान सर्वोच्य है।
१. संविधान की तीसरी अनुसूची में अनुच्छेद 75(4), 84(क), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 173(क),188 और 219 को ध्यान में रखते हुए शपथ का प्रारूप बनाया है। यह शपथ तो अरविंद केजरीवाल ने रामलीला मैदान में हजारों लोगों के सामने ली थी। इसमें एक बात यह भी थी कि मैं अरविंद केजरीवाल विधि द्वारा प्रस्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्य रखूंगा। सबसे पहले उन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा और फिर एकता- अखंडता बनाए रखने की शपथ तोड़ी है।
२. कौन सा गणतंत्र कहकर उन्होंने संविधान और उसकी शपथ की अवमानना की है। आम तौर पर नक्सलवादी और प्रगतिवादी विचार के तौर  इस प्रकार गणतंत्र दिवस की अवहेलना करते हैं। चुने हुए मुख्यमंत्री का ऐसा कहने का मामला पहली बार आया है।
३. विधि के शासन के नियमों को ताक पर रखकर खुद धरने पर बैठ गए। धरने के लिए न तो उन्होंने नियमानुसार अनुमति ली और न ही सुप्रीम कोर्ट के नियमों का पालन किया। दिल्ली में अनुमति के बाद सिर्फ जंतर मंतर पर धरना दिया जा सकता है। लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शन को अपनी बात कहने का एक माध्यम माना जाता है इसलिए इस पर पूरी तरह रोक नहंीं है। अगर अरविंद केजरीवाल के लिए धरना देना इतना ही जरूरी था वे जंतर-मंतर, रामलीला मैदान पर सांकेतिक धरना दे सकते थे। सरदार सरोवर बांध के मुद्दे पर गुजरात के मुख्यमंत्री भी सांकेतिक धरना दे चुके हैं।
४. पुलिस को विद्रोह करने के लिए भडक़ाया। यानी राज्य या राष्ट्र के खिलाफ विद्रोह करने के लिए बात कही। सशस्त्र बलों के संदर्भ में ऐसा करना  भारतीय दंड संहिता के तहत भी गंभीर किस्म का अपराध है।
५. गृहमंत्री मुझे यानी केजरीवल को कैसे बता सकता है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कहां पाए न जाए यह कहकर उन्होंने यह संकेत देने का प्रयास किया कि वे संविधान से उपर हैं। इस देश में संविधान ही सर्वोपरि है बाकी सब उससे नीचे। यह भारत के संघीय ढांचे को भी चुनौती है। अगर कहीं निशेधाज्ञा लगी है तो मुख्यमंत्री भी उसे नहीं तोड़ सकत हेैं। यानी फिर उन्होंने कानून के शासन को तोड़ा हैद्ध
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस पद पर आने से पहले कंाग्रेसी थे इसलिए कुछ लोग उनके भाषण को राजनीति के चश्मे से भी देख रहे हैं। कारण कि भाषण को सरकार की नीति के रूप में देखा जाता है। अगर ऐसा भी है तो इसमें एक दूसरी किस्म की अराजकता की बात भी छुपी है। राष्ट्रपति ने जिस लोकलुभावन अराजकता का जिक्र किया है उसमें एक तो केजरीवाल के धरने के तौर पर दिख रही है और दूसरी जो दिख नहीं रही है जो कि ज्यादा खतरनाक है। वोट पाने के लिए पहले लोकलुभावन वादे करना फिर उन्हें पूरे नहीं करना या लागू करने के लिए शर्तें लागू करना जनता को पहले परेशान करती है फिर उन्हें लोकतांत्रिक प्रकिया से दूर करती है। इससे जनता मन में यह धारणा बना लेती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कुछ होना जान नहीं है। यानी मानसिक तौर पर पहले लोकतंत्र के प्रति नाराजगी का भाव आता है। एक समय बाद वह अराजकता के भाव में बदलने लगता है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
लेकिन चिंता की बात नहीं है हमारे संविधान निर्माता लोग दूरगामी थे। उन्होंने भविष्य में बनने वाली स्थितियों की पहले से ही कल्पना कर ली थी इसीलिए उन्होंने देश को व्यक्ति नहीं संविधान द्वार शासित बनाया और यही हमें इसी अराजकता से निपटने की ताकत देती है। तभी सुप्रीम कोर्ट जिसके पास कि संविधान की व्याखया करने का एक मात्र और अंतिम अधिकार है केन्द्र और दिल्ली सरकार ने धरना देने के अधिकार और पुलिस की मूकदर्शकता पर सवाल उठाए हैं। मान के चलिए कि अरविंद केजरीवाल, केन्द्र सरकार और दिल्ली पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की कम से कम फटकार तो तय है। साथ ही कोर्ट यह भी तय कर देगा कि मुख्यमंत्री धरना दे सकता है या नहीं और सांकेतिक रूप स अगर दे भी सकता है तो किस अनुशासन के साथ। कारण कि देश की सर्वोच्य अदालत के सामने प्रश्न है कि क्या कानून बनाने वाला कानून तोड़ सकता है। तय है जवाब नहीं ही आएगा।
यानी नारा लगाईए हमारा गणतंत्र अमर रहे।

बुधवार, 22 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-15) डेमोक्रेसी में ये कैसी ड्रामाक्रेसी?


लालकिले से  (भाग-15)

डेमोक्रेसी में ये कैसी ड्रामाक्रेसी?


 हमारी डेमाक्रेसी में इन दिनों ड्रामाक्रेसी का दौर चल रहा है। नाटकों के बीच नौटंकी, राजनीतिक प्रहसनों की नाटकीयता और अति नाटकीयता की होड़ सी लगी है। नरेन्द्र मोदी चाय वाले को समाज में पीछे से आगे लाने का ओबीसी सोश्यल ड्रामा देश को दिखा रहे हैं। राहुल गांधी मोदी की शैली में भाषण देेना चाह रहे हैं। पर देश को विजन देने के बजाय तीन सिलेंडर थमा देते हैं। दिल्ली कांग्रेस केजरीवाल से सीखते हुए समर्थन वापसी के लिए केजरीवाल की ही तर्ज पर रेपरेंडम करने का फैसला कर चुकी है। भाजपा काली टोपी के साथ भगवा टोपी की ओर जा रही है। केजरीवाल लगातार इतने बयान बदल  रहे हैं कि शब्द यू टर्न बार-बार घूम-घूम कर जलेबी बन गया है। दीवाना खुद के बयानों की मार तले पागल हो रहा है। महाराष्ट्र का एक हवलदार सारी दिल्ली को पुलिस की आड़ में ऐड़ा बना रहा है। बाबू ये नाटकों का दौर है। सब अपनी-अपनी स्क्रिप्ट के किरदार हैं। 

गणतंत्र को गरियाने का नाटक नहीं चलेगा

नाटक की शुरूआत आम आदमी पार्टी ने की। जिस कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसा उसी से समर्थन लेने के लिए रेफरेंडम का नाटक। सरकार बन गई और कुछ नहीं कर पाए तो उसे छुपाने और लोकसभा चुनाव के लिए धरने का नया नाटक। पर इस नाटक में गणतंत्र को गरियाने की अतिनाटकीयता कर बैठे मफलररामजी।  तभी तो पीछे हटना पड़ा। जिस लोकतंत्र की बलिहारी से आप वाले दिल्ली के तख्त पर आए तो उसे ही झुठलाने का अहम। गणतंत्र को गाली देने का दुस्साहस। झाडूवालों को  दिल्ली का जो तख्तो-ताज कुछ महीनों के संघर्ष मात्र से मिल गया इतिहास गवाह है कि उसे पाने के लिए हेमू से लेकर बहादुरशाह जफर और फिर अंग्रजों को कितनों का खून बहाना पड़ा। यही इंद्रप्रस्थ महाभारत के युद्ध का कारण बना। पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों से  देश को आजाद कराने के लिए लाखों ने कुर्बानी दी। जब आजाद हुए तो आजादी को संविधान लिखकर अनुशासन में बांध दिया गया। ताकि कोई सिरफिरा इसपर सवाल न उठा सके। इसलिए हम दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र हैं। हर चीज नियम कायदों में। और उस गणतंत्र को केजरीवालजी आप गरियाते हैं। इसी गणतंत्र की भावना से केजरीवालजी आपकी दिल्ली में सरकार बनी और देश ने 32 घंटे तक बंधक बनाने के आपके नाटक को झेला। वरना कोई और कोई तंत्र होता को गोलियां चल गईं होती, सैकडों लाशें बिछ गई होती और आप जेल में बंद होते। इसलिए यह कैसा गणतंत्र दिवस वाले बयान के लिए आप देश से माफी मांगे वो भी बिना नाटक किए।

समर्थन वापसी के लिए कांग्रेस करेगी रेफरेंडम 

अब कांग्रेस भी दिल्ली की जनता से रेफरेंडम या जनमत संग्रह कर पूछेगी कि क्या केजरीवाल की सरकार को समर्थन जारी रखना चाहिए या नहीं। जब कांग्रेस वाले रेफरेंडम करेंगे तो जवाब भी उन्हीं के अनुसार ही आएगा। केजरीवाल नें कांग्रेस से समर्थन लेने के लिए रेफरेंडम करवाया तो अब कांग्रेस समर्थन वापसी के मुद्दे पर रेफरेंडम करवाएगी। 26 जनवरी के बाद रेफरेंडम होगा। कांग्रेस का राजनीति करने में कोई सानी नहीं है- यानी केजरीवाल को केजरीवाल की शैली में नाटकीय जवाब। यानी कि समर्थन वापसी की पटकथा लिखनी शुरू हो चुकी है।

यहां घोषणाओं का नाटक और वहां हकीकत

केजरीवाल ने कभी नहीं सोचा था कि सरकार बनाने का उन्हें सममुच में नाटक करना पड़ेेगा। इसलिए असंभव से वादे कर दिए। बिजली- पानी की छूट अभी घोषणाओं में ही है। अमल बजट में आने के बाद ही होगा। हाई मोरल वादे ईमानदारी, सुरक्षा और बड़े बंगले  वाले वादों में तो अब वे लोकसभा चुनाव तक फंस ही गए हैं। सुरक्षा नहीं लेने की ऐसी नौटंकी कि दिल्ली पुलिस का  लगभग 50 सुरक्षाकर्मियों का स्टाफ उनके पीछे लगा रहता है। कारण कि सुरक्षा नहीं ली है। अगर ले लें तो दस में भी काम हो सकता है। पर मुई इस नौटंकी का क्या करें। जनता दरबार से सभी ने टोपीवालों को भागते देखा। आपही के कभी खासमखास रहे विनोद बिन्नी की आउटस्विंग आपसे खेलते ही नहीं बन रही है। कारण कि उन्होंने आपका सच सामने ला दिया। अब जनता धरने पे धरने दे इससे पहले धरने की नौटंकी क्या बुरी है। 

विरोधाभास का यह कैसा नाटक

अरिवंद केजरीवाल धरने पर बैठे और तीन पुलिस वालों के मुद्दे को इससे जोड़ दिया कि दिल्ली पुलिस राज्य के नियंत्रण में हो। केजरीवालजी यह कैसा विरोधाभास है कि जब जनलोकपाल की बात आती हैं तो आप सीबीआई तो लोकपाल के तहत लाने की बात करते हो और जब खुद आपके राज्य की बात आती है तो आप पुलिस को अपने नियंत्रण में लाने की बात करते हो। यह विरोधाभास का कैसा नाटक है।
दीवानों और  पागलों की नाटकीयता
उधर कविराज बयानों की नाटकीयता में उलझे इुए हैं। केरल की सेवाभावी नर्सों पर की गई टिप्पणी पीछे पड़ गई उपर से यह कहकर कि फिल्म इंसाफ का तराजू में किए बलात्कार के लिए क्या कांग्रेस राजबब्बर से माफी मांगने को कहेगी अपनी अति नाटकीयता का परिचय दिया। अरे भई फिल्म कैसी होगी इसे सेंसर बोर्ड पास करता है। इसलिए तो फिल्म को ए प्रमाण- पत्र मिला। आप तो कवि सम्मेलनों में बेरोकटाटे बोलते हैं। कभी संत निशाने पर होते हैं तो कभी सेवाभावी नर्सें। खुद सेंस नहीं रखोगे तो नानसेंस, न्यूसेंस सभी होगा। उस पर महाराष्ट्र वाले हवलदार साहेब बिना नाम लिए केजरीवाल को ऐड़ा मुख्यमंत्री कहने का सुपरफ्लाप डायलाग बकते हैं। हवलदार जी फिल्म पड़ोसन में किशोकुमार के  गीत में शब्द हैं- ओ ऐड़े सीधे हो जा रे। बाकी आप खुद समझदार हैं।

नाटक के बजाय मल्टीस्टारर फिल्म

6 साल पहले जब पत्रकार प्रशांत दयाल तो गुजरात विधानसभा चुनाव के समय स्टोरी छापी थी कि मोदी बचपन में चाय बेचा करते थे। उस समय मोदी समर्थकों को यह स्टोरी अच्छी नहीं लगी थी पर आज इस स्टोरी पर ड्रामे से भी आगे आरएसएस प्रोडक्शन की मल्टीस्टारर फिल्म मिशन 272 प्लस बन रही है। निदेशक हैं राजनाथ। वैसे इसे एकपात्रीय फिल्म कहें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।






मंगलवार, 21 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-14) तांगे में जुता बरात का एक घोड़ा और जनता की फजीहत


लालकिले से  (भाग-14)


तांगे में जुता बरात का एक घोड़ा और जनता की फजीहत



एक किस्सा है। एक तांगा हर तीस-चालीस कदम जाकर रूक जाता। रूकते ही तांगे वाला उतरता, डांस करता, फिर अपनी सीट पर बैठ जाता। तब कहीं जाकर तांगा आगे बढ़ता। फिर तीस-चालीस कदम बाद तांगा रूक जाता। फिर वही उतरने और नाचने की नौटंकी। जब तीन- चार बार ऐसा हो गया तो तांगे में बैठी सवारी से रहा नहीं गया। उसने तांगे वाले से पूछ ही लिया कि यह क्या लगा रखा है। तांगे वाले ने कहा- बाबूजी माफ करें, दरअसल आज मेरा घोड़ा बीमार है इसलिए मैंने इसमें बरात का घोड़ा जोत दिया है। कमबख्त को हर तीस-चालीस कदम पर डांस देखने की आदत है इसलिए डांस देखे बगैर आगे बढ़ता ही नहीं। मेरी भी मजबूरी है, ंइसे चलाने के लिए डांस करने की। अब क्या करूं।
दिल्ली के जनता के हाल भी इसी तांगे वाले जैसे हो गए हैं। बेचारे क्या करे। आंदोलन वाले घोड़े को सत्ता की बरात में जोत दिया। अब उसे को आंदोलन की आदत है। धरना-प्रदर्शन तो करेगा ही बे चारा।
१. दरअसल बिजली पानी के मुद्दों पर जोर-शोर से घोषणाएं करने के बाद जमीनी हकीकत शून्य है। बजट में प्रावधान किए बगैर इन्हें लागू नहीं किया जा सकेगा।
२. जनलोकपाल लाना मुश्किल है। कारण कि बाद में अन्ना को यह समझ में आ गया वे इस जिस जनलोकपाल की बात कर रहे थे उसका कद प्रधानमंत्री से भी बड़ा है और यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।
३. शीला दीक्षित के राष्ट्रमंडल खेल घोटाले समेत कांग्रेस के दर्जनों घोटालों पर अगर कार्रवाई करते हैं तो गृह मंत्रालय केजरीवाल और उनके एनजीओ के खिलाफ सीआईए समर्थित फोर्ड फाउंडेशन से फंडिग और आप को विदेशों से अनुमति लिए बगैर चंदा लेने के मामले में घेर सकता है।
४. कर्मचारियों को नियमित करने के लिए बजट कहां से आएगा। क्योंकि वो तो पानी-बिजली की सब्सिडी में चला जाएगा। दिल्ली सचिवालय के बाहर चल रहे शिक्षकों के धरने में जाकर उनकी बात सुनने की मुख्यमंत्री को फुरसत ही नहीं है।
५. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। कारण कि दिल्ली के राजधानी सिस्टम को वाशिंगटन डीसी की तर्ज पर बनाया गया है। संविधान के अनुच्छेद-239 के अनुसार दिल्ली की पुलिस केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन होगीञ्। भाजपा-कांग्रेस ने लोगों को अभी तक अंधरे में रखा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में परेशानियां हैं। केजरीवाल की धरना नौटंकी के बाद तो दिल्ली को यह दर्जा मिलने वाली संभावनाएं बिल्कुल समाप्त हो गईं हैं। कारण कि दिल्ली में केजरीवाल टाइप मुख्यमंत्री को पुलिस मिल जाए तो फिर तो प्रधानमंत्री पर भी मुख्यमंत्री कार्रवाई करवा सकता है। मोदी टाइप हो तो अमेरिकी दूतावास की खैर नहीं। दिल्ली के बाहरी इलाकों के लिए राज्य की पुलिस या दोहरी रिपोर्टिंग जैसी समन्वय वाली व्यवस्थाएं ही यहां लागू हो सकती हैं।
६. जब पुलिस ही नहीं है तो महिला सुरक्षा कहां से होगी। महिला कमान्डो टीम का गठन और उन्हें प्रशिक्षित करने में कम से कम दो साल चाहिए।
७. अवैध कालोनियों का नियमन और वहां पानी, सडक़, और सीवरेज की व्यवस्था करना खर्चीला और लंबे समय का काम है।
८. आम आदमी पार्टी के विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने ही केजरीवाल और उनके चमचों की पोल खोल दी है। उनके साथ तीन-चार और विधायक बगावत करने के लिए तैयार हैं।  जिस कांग्रेस के खिलाफ जनता ने उन्हें जिताया उसी से उन्होंने घालमेल कर सरकार बना ली।
९. अरविंद केजरीवाल ने जितनी घोषणाएं की हैं उन्हें पूरा करने लिए एक लाख करोड रूपए चाहिए। इतना पैसा आएगा कहां से।
१०. राबर्ट वाड्रा, जिंदल और अंबानी पर आरोप लगाने का माद्दा नहीं बचा। पता नहीं इनके खिलाफ क्यों चुप बैठे हैं।
११. रही सही कसर केजरीवाल मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों सोमनाथ भारतीय, राखी बिड़लान पर लगे आरोपों ने पूरी कर दी। राखी तो ठीक सोमनाथ भारतीय पर विदेशी महिलाओ के मोलेस्टशन और एक न्यायिक मामले में सबूतों से छेड़छाड के गंभीर आरोप हैं।                                      
अब आम आदमी पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर है। महीने भर बाद आचार संहिता  लग जाएगी। काम कुछ दिख नहीं रहे हैं। जनता दरबार में वे लोगों के अपेक्षा और आक्रोश दोनों ही देख चुके हैं।
 ऐसे में जनता उनके खिलाफ धरना दे वे पुलिस को मुद्दा बनाकर महाराष्ट्र पुलिस के एक पुराने हवलदार के खिलाफ धरने पर बैठ गए। कारण कि बरात की घोड़ी को तांगे में जुतने पर चलने के लिए डांस का सहारा लेना पड़ता है सो धरना चालू है इसे था पढें।












लालकिले से  (भाग-13)

सुप्रीम कोर्ट के डर, गणतंत्र दिवस विरोधी बयान और अराजकता पर मीडिया के स्टंैड के कारण केजरीवाल को पीछे हटना पड़ा

दोनों एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए केजरीवाल के पीएस राजेन्द्र ने राजी किया, केन्द्र सरकार ने एक भी शर्त नहीं मानी





दिल्ली पुलिस के तीन एसएचओ के बहाने देश भर में माहौल बनाने के लिए दस दिन तक धरने की तैयारी से आए केजरीवाल को 32 घंटे में ही अपना आंदोलन वापस लेना पड़ा। जिसे वह अपनी जीत बता रहे है वह उनकी हार है। दरअसल केन्द्र ने उनकी एक भी शर्त नहीं मानी। जिन दो एसएचओ को छुट़टी पर भेजे जाने की खबरें आ रही हैं उन्हें खुद केजरीवाल के सचिव राजेन्द्र कुमार ने लाखें मिन्नतें कर छु़ट़टी पर जाने को राजी किया। इसके बाद दोपहर 1 बजे उप राज्यपाल नजीब जंग के घर योगेन्द्र यादव लंच पर गए और धरना खत्म करने की पेशकश की। इसके बाद रात 8 बजे के बाद उप राज्यपाल ने अरविंद केजरीवाल से अपील की कि गणतंत्र दिवस और सुरक्षा के मुद्दे पर धरना खत्म कर दें। केजरीवाल तो उधार ही बैठे थे। उन्होंने अपने अधसच्चे भाषण के साथ धरना समाप्त करने का ऐलान कर दिया।  इस पांच मुद्दों के कारण केजरीवाल को पीछे हटना पड़ा और उनकी भारी किरकिरी हुई।

1.सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार 

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को धरने को लेकर अरविंद केजरीवाल और मंत्री सोमनाथ के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम ने  इस पर शुक्रवार को सुनावाई करेंगे। इस याचिका में धरने से होने वाली अव्यवस्था और सोमनाथ भारती को बचाने के विषय को उठाया गया है। जब तक केजरीवाल और उनकी टीम को इसकी भनक लगी कि याचिका स्वीकार हो गई है तब तक लुटियंस विला में अराजकता से  हालात बन चुके थे। तब लगा कि कहीं कोर्ट शुक्रवार को इस अराजकता पर कोई सख्त बात न कह दे ले इसलिए तुरत-फुरत धरना समेटने की पटकथा लिख दी गई। इसलिए आप ने केन्द्र के सामने हथियार डालते हुए सम्मानजनक फार्मूले की बात  उप राज्यपाल के मार्फत कही। सुप्रीम कोर्टमें इस विषय पर दिल्ली और केन्द्र सरकार की किरकिरी होनी तय है। कारण कि  धरना प्रकरण में केजरीवाल ने  संविधान और कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं।

2.गणतंत्र और मीडिया का विरोध महंगा पड़ा 

ये कोई गणतंत्र दिवस है। ये  गणतंत्र और वीआईपी लोगों के लिए है। असली गणतंत्र तो ये है। इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हुई। मीडिया और केजरीवाल के समर्थकों की ओर से भी इसकी विपरीत प्रतिक्रिया आने लगी। मीडिया भी इस तरीके को अराजक बताने लगा। मैट्रो और रास्ते बंद होने से जनता भी विरोध में आने लगी। अपेक्षित समर्थन भी नहीं मिला। केजरीवाल को लगने लगा कि गणतंत्र का विरोध करने से कहीं उन्हें देशद्रोही की उपमा न मिल जाए। उन्होंने धरना समाप्त करने का फैसला किया और दो टीमों को काम पर लगाया। पाकिस्तानी मीडिया ने आज केजरीवाल के गणतंत्र वाले मुद्दे पर जम्हूरियत का खूब मजाक उड़ाया।

3. खुद एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए राजी किया

दिल्ली सचिवालय में पहली टीम में केजरीवाल के पीएस राजेन्द्र कुमार ने दोनों एसएचओ को छुट्टी पर जाने को राजी किया। इसी दौरान एलजी नफीज जंग के घर पर लंच के बहाने अरविंद के शांति दूत बनकर योगेन्द्र यादव गए। और कहा कि दो एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए हमने राजी कर लिया है अत: आप जांच तक दोनों को छुृ्रट़टी पर भेजने की घोषणा करें। इसके बाद शाम को गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह राष्टपति से मिलने गए और उनसे इस मामले पर उनकी मुहर लगवाई।

4.पुलिस की सख्ती और सेना का डर 

दोहपर में बाधाएं हटाकर रेलवे भवन की ओर जाने को प्रयास कर रहे आप कार्यकर्ताओं पर दिल्ली पुलिस के लाठीचार्ज के बाद धरना स्थल को रैपिड एक् शन फोर्स ने घेर लिया। इससे भी केजरीवाल को लगा अब केन्द्र सख्ती कर सकता है। इसी बीच रेलवे भवन को बंद कर धरना स्थल  को कल तक खाली करने के लिए अल्टीमेटम दे दिया गया। कारण कि कल से इस सारे इलाके का कब्जा सेना अपने हाथ में ले लेगी। सेना को कल तक कैसे भी करके यह स्थान खाली करके देना था।

5. कांग्रेस ने केजरीवाल को आइना  दिखाया

केजरीवाल को गेमप्लान का था कि सरकार शहीद करवाकर वे नेशनल हीरो बन जाएं जाएंगे पर महाराष्ट्र पुलिस के एक पुराने कांस्टेबल ने उनका सारा खेल बिगाड़ दिया। न मांगे मानी और माहौल को इतना अराजक होने दिया कि देश में केजरीवाल की छवि बिगड़े। एसएचओ को छुट्टी पर भेजने के बारे में गृहमंत्री और एलजी की ओर से कोई आफिसियल बयान नहीं आया है। सारा समझौता राजनीतिक बयानबाजी पर आधारित था। लेकिन कांग्रेस ने न समर्थन वापस लिया, न सरकार बर्खास्त हुई और न ही गोली चली। वापस हुआ तो धरना। उसी से ठंडा उसी से गरम की तई पर कांग्रेस ने केजरीवाल से राजनीति खेल डाली।  कुल मिलाकर केजरीवाल का हाल खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना जैसा हो गया।











सोमवार, 20 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-1२) मैं अरविंद केजरीवाल ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द़वारा प्रस्थापित भारत के संविधान को सडक़ पर ला दूंगा


लालकिले से  (भाग-1२)

मैं अरविंद केजरीवाल ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द़वारा प्रस्थापित भारत के संविधान को सडक़ पर ला दूंगा

दिल्ली में सरकारी अराजकता,  अराजकता, अनुच्छेद-356 के तहत बर्खास्त हो सकती है केजरीवाल सरकार, एक भी कानून का पालन नहीं किया


  1.  केजरीवाल ने प्रतिबंधित रायसीना हिल्स क्षेत्र में धारा -144 को तोडा। यहां गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियों के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है। लिहाजा इस तरह के आंदोलन से सुरक्षा में हुई जरा सी भी चूक बड़ी तबाही का सबब बन सकती है।
  2. लोगों को सरकार के एक हिस्से पुलिस के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाया और  इसके लिए देशभर के लोगों से धरना स्थल रेलवे भवन के बाहर आने का आह्वान किया। यह सीधा-सीधा अराजकता हो आमंत्रण। भारतीय दंड संहिता के तहत यह राज्य के खिलाफ विद्रोह का मामला बनता है। शायद यही कारण है कि केन्द्र सरकार ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया। पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर अगर दोनों सरकारें एक ही राजनैतिक दल की नहीं हुई तो टकराव हो सकता है। केजरीवाल ने आज धरने की जो नौटंकी की है उसके बाद तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की रही सही संभावनाएं भी खत्म हो गई हैं।
  3. मैं अरविंद केजरीवाल ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा प्रस्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखूंगा। रामलीला मैदान में ली गई पहली शपथ का यह वाक्य कैसे भूल गए अरविंद केजरीवाल।
  4. बजट में प्रावधान किए बिना बिजली और पानी बिलों में सब्सिडी की घोषणा कर दी। बेहतर यह होता कि बजट में इसका प्रस्ताव लाते और विधि के शासन के अनुसार काम करते। 
  5. संविधान का अनुच्छेद-356 कहता है कि अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाने या ऐसी स्थिति उतपन्न हो जाने जिसमें कि राज्य का  शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राज्यपाल की सिफारिश पर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। सोमवार को केजरीवाल ने जो किया अगर वह एक दो दिन और जारी रहता है या वहां भारी जनसमुदाय एकत्रित होता है तो संवैधानिक तंत्र विफल होने की स्थितियां बन सकती हैं। आईबी ने केन्द्र सरकार को बताया है कि वहां भारी जनसमूह एकत्रित कर पुलिस के खिलाफ विद्रोह करने की योजना है।
  6. अगर सरकार बच भी गई तो वित्त विधेयक पर सरकार का जाना तय है। अगर वित्त विधेयक गिर गया तो मुख्यमंत्री को जाना ही पड़ता है। बिन्नी के साथ चार विधायक हैं।े
  7. वैसे केजरीवाल खुद मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहते वे ऐसा कुछ करना चाहते हैं जिससे कि वे लोकसभा चुनाव के पहले लोगों की संवेदना बटोर सकें। यदि राजनीतिक लाभ के लिए संविधान की शपथ भी सडक़ पर आती है तो आने दो।

लाल किले से (भाग-११) केजरीवालजी, दिल्ली के मुख्यमंत्री की औकात ऐसे भी किसी बड़े शहर के महापौर से ज्यादा नहीं है, केन्द्रीय गृहमंत्री ही होते हैं दिल्ली के असली मुख्यमंत्री


लाल किले से (भाग-११)

केजरीवालजी, दिल्ली के मुख्यमंत्री की औकात ऐसे भी किसी बड़े शहर के महापौर से ज्यादा नहीं है, केन्द्रीय गृहमंत्री ही होते हैं दिल्ली के असली मुख्यमंत्री

पूर्ण राज्य का दर्जा मिलते ही दिल्ली का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के बाद देश का सबसे ताकवर नेता हो जाएगा इसलिए दिल्ली सरकार सदैव नख और दंत विहीन रहेगी।

 

 

भले ही केन्द्रीय सूचना और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी कहें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मंत्रियों का धरने पर बैठना असंवैधानिक है और इससे कुछ होने वाला नहीं है। कुछ लोग उन्हें अराजक ता का सूत्रधार बता रहे हैं। पर एक बात तो है कि केजरीवाल के इस धरने के साबित हो गया कि दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री की हैसियत किसी शहर के महापौर से ज्यादा नहीं है। इसलिए उनके इस धरने का मकसद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाना ज्यादा नजर आ रहा है। मजेदार बात यह है कि वे इस बात को अभी कह नहीं रहे हैं।
इसके तीन कारण हैं। पहला कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है। दूसरा कानून व्यवस्था संभालने वाली पुलिस भी केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन रहती है। तीसरा और अंतिम ये कि दिल्ली विधानसभा को कानून पास करने के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। इससे यह भी पता चलता है कि दिल्ली राज्य के पास राजदंड या पुलिस नहीं है। यानी वह बिना दांत के शेर के समान है। राज्य सत्ता में दंड यानी भय यानी पुलिस का अहम रोल है। यही राजसत्ता की ताकत का आधार है। जब यही नहीं था तो दिल्ली पुलिस ने भी केजरीवाल के मंत्रियों को भाव नहीं दिए हैं और इसी हताशा में केजरीवाल आज धरने पर बैठ गए।
दिल्ली में १५ साल शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं इस दौरान आखिरी दस साल केन्द्र में  कांग्रेस का शासन था इसलिए पुलिस उनकी सुनती थी अब विरोधी दल का शासन है इसलिए दिल्ली पुलिस सुन नहीं रही। केन्द्र सरकार कभी भी नहीं चाहेगी कि वह दिल्ली से अपना नियंत्रण हटाए। पूर्ण राज्य की स्थिति में केन्द्र और राज्य में सीधे टकराव हो सकता है।
पुलिस रहित दिल्ली सरकार के हालात दिल्ली नगर निगम से ज्यादा नहीं हैं। यानी टैक्स वसूलो और जनता को सुविधाओं दो। बिजली, पानी, शिक्षा, परिवहन, रोड, उदय़ोग विभाग में भी काम करने के लिए काफी  स्कोप है। पर सत्ता की ताकत का पता  पुलिस के बगैर नहीं लगता। आपका रौब भी इसी में है कि पुलिस आपको कितना सलाम ठोकती है। पुलिस के बगैर दिल्ली राज्य ऐसा है जैसे बिना सिंदूर के दुल्हन।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में सबसे बड़ी मुश्किल है वीआईपी सुरक्षा। वीआईपी सुरक्षा कौन को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं।  यह बात भी आई कि वीआईपी सुरक्षा के अलावा पुलिस का नियंत्रण दिल्ली सरकार को दे दिया जाए। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देेने में एक बड़ी दिक्कत यह है कि अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया तो दिल्ली का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के बाद देश का सबसे ताकवर नेता हो जाएगा। कोई प्रधानमंत्री नहीं चाहता कि उसके पद की गरिमा से थोड़ा ही कम वाला व्यक्ति दिल्ली में रहे। नेताओं को यह भी डर है कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर पुलिस राज्य सरकार के मातहत हो जाएगी। ऐसी दशा में दिल्ली राज्य और केन्द्र में अलग दलों की सरकार होने पर बड़े टकराव की नौबत आ सकती है।  इसे ही देखते हुए दिल्ली की सरकार को नख और दंत विहीन रखा गया है।

दिल्ली सरकार को दोहरी रिपोर्टिंग में लाए

इसका एक समाधान है कि दिल्ली पुलिस को कारपारेट हाउस की तरह वर्टिकल एंड यूनिट रिर्पोटिंग सिस्टम के तहत लाया जाए।  इसका मतलब है कि वह केन्द्र और राज्य दोनों का रिपोर्ट करे। आफिसियल तौर पर वह केन्द्र के अधीन ही रहेगी लेकिन दिल्ली की रोजाना की कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए वह मुख्यमंत्री के अधीन राज्य के गृह विभाग को रिपोर्ट करेगीे। नियुक्ति, पोस्टिंग और अन्य मसलों के लिए एक समन्वय समिति बनाई जाए।

तो असली मुख्यमंत्री कौन

पिछले दिनों पूर्व गृह सचिव आरके सिंह ने गृहमंत्री शिंदे पर आरोप लगाए थे कि दिल्ली पुलिस में पोस्टिंग उन्हीं के इशारे पर होती है और उनके बगैर दिल्ली पुलिस में पत्ता भी नहीं हिलता। इस लिहाज से दिल्ली के असली मुख्यमंत्री तो केन्द्रीय गृहमंत्री होते हैं और वे एलजी यानी लेफ्टिनेंट गर्वनर के माध्यम से अपनी सरकार चलाते हैं। अभी ये जिम्मा शिंदे के पास हैं यानी दिल्ली के असली मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे हैं। इसलिए केजरीवालजी इसे आप जितना जल्दी समझ जाएं अच्छा है।

रविवार, 19 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-10) मंदिर वाली पार्टी मंडल की राह पर


लालकिले से  (भाग-10)

मंदिर वाली पार्टी मंडल की राह पर

गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब राजस्थान में सामान्य और ओबीसी कांबीनेशन की सफलता के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के केन्द्र में होगा यह समीकरण। प्रधानमंत्री के उम्मीदवार मोदी ओबीसी तो अध्यक्ष राजनाथसिंह सामान्य वर्ग से।

मीडिया वालों को या तो न्यूजसेंस नहीं है या फिर उन्होंने किसी दबाव में ऐसा किया। दरअसल नई दिल्ली के रामलीला मैदान में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक का सभी चैनलों ने सीधा प्रसारण दिखाया। जब विश्लेषण की बारी आई तो सभी चैनल मुद्दों से भटकते नजर आए। कांग्रेस पर राजनीतिक हमला और देश के भविष्य का विजन प्लान अपनी जगह पर महत्वपूर्ण थे लेकिन इसके बीच मोदी एक बड़ी राजनीति खेल गए। इसे कोई भी चैनल या विश्लेषक नहीं पकड़ पाया। मोदी ने कांगे्रस पर राजनीतिक हमला बोलते हुए बड़ी ही चतुराई से ओबीसी प्रधानमंत्री का कार्ड खेल दिया। अभी तक यह बात दबे-छुपे तरीके से ही चल रही थी। आज मोदी ने राहुल और कांग्रेस पर नाम लिए बिना कहा कि वे नामदार हैं, पिछड़ी जाति में पैदा हुए व्यक्ति के खिलाफ चुनाव लडऩा उनकी शान के खिलाफ है। मोदी के विरोधियों और समर्थकों के लिए भी यह एक बड़ी राजनीति बहस का विषय था। खबर भी बड़ी थी। मतलब मंदिर वाली पार्टी मंडल की राह पर पर आ गई है। लेकिन चैनलों से न्यूज और विषय दोनों गायब।
या तो चैनल वाले इस खबर को पकड़ नहीं पाए या जानबूझकर इस खबर को दबाते रहे। खबर दबाने का शक इसलिए है कि शाम को दिल्ली के चैनलों पर वही पुराना घिसे- पिटे केजरी और सुनंता के टेप चलने लगे। मंडल आंदोलन के बाद यह देश में मोदी की ओर से चला गया सबसे बड़ा ओबीसी मूव था।

देश में जनसंख्या का जातीय समीकरण

यदि जनसंख्या के हिसाब से बात करें तो मंडल आयोग की 1980 की सिफारिसों के अनुसार देश में 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी है। यानी जैसे महिलाओं को आधी आबादी कहा जाता है वैसे भारत में भी ओबीसी वर्ग को भी आधी आबादी कहा जा सकता है। लेकिन मंडल के 26 साल बाद हुए नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन के आंकडों के अनुसार देश में ओबीसी की आबादी घटकर 41 फीसदी हो गई है। खैर इस आंकडों को लेकर विवाद भी हुआ। एनएसएसओ के २००६ के आंकडों के अनुसार देश की आबादी में ४१ प्रतिशत ओबीसी, २० प्रतिशत एससी और ९ प्रतिशत एसटी और शेष अन्य वर्ग के हैं। अन्य में 21 फीसदी सवर्ण जातियां और शेष 9 फीसदी मुस्लिम हैं। ओबीसी की कुल आबादी में से 75 फीसदी , यूपी, बिहार, उड़ीसा,झारखंड, बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में रहती है। यूपी और बिहार के मुस्लिम यादव समीकरण के खिलाफ भी समान्य और ओबीसी का काम्बीनेशन अब दांव पर है।
अगर हम मोदी के टार्गेट वोटर ग्रुप को देखें तो उसका फोकस 41 फीसदी ओबीसी और 21 फीसदी सवर्ण वोटों पर है। यानी कुल 62 फीसदी आबादी पर फोकस। एससी, एसटी और मुस्लिमों में जो उनका वोट है वो तो है ही। गुजरात, मध्यप्रदेश  और छत्तीसगढ़ में भाजपा की लंबे समय से सरकार बने रहने का एक कारण ओबीसी वर्ग है। इन राज्यों में मुख्यमंत्री या प्रदेशाध्यक्ष में से एक ओबीसी का अनिवार्य रूप से रहता है।

खाम थ्योरी के खिलाफ सामान्य और ओबीसी का गठजोड़

दरअसल गुजरात में कांग्रेस की माधवसिंह सोलंकी की खाम थ्योरी के खिलाफ आरएसएस ने ओबीसी और सामान्य वर्ग के गढजोड़ की थ्योरी चलाई थी। इसीके कारण भाजपा वहां सत्ता में आई। खाम की स्पेलिंग के एच ए एम में के मतलब क्षत्रिय, एच का मतलब हरिजन, ए मतलब आदिवासी और एम का मतलब मुस्लिम है। इससे आधार पर गुजरात में कांग्रेस ने एक छत्र राज्य किया। आरएसएस ने खाम थ्योरी के खिलाफ सामान्य और ओबीसी का कांबीनेशन तैयार किया । यह सफल रहा। कारण कि खाम थ्योरी से कांग्रेस २० प्रतिशत एससी, ९ प्रतिशत एसटी, 9 प्रतिशत मुस्लिम और 1 प्रतिशत क्षत्रिय यानी कुल 39 प्रतिशत जनसंख्या पर फोकस करती थी। ओबीसी के लोग भी वोट देते थे लेकिन फोकस खाम पर ही रहता था। आरएसएस ने पटेलों को साथ लेकर कांग्रेस की खाम थ्योरी के खिलाफ ओबीसी वर्ग को संगठित किया। यानी 39 प्रतिशत के खिलाफ 62 फीसदी लोगों की राजनीति। इसलिए गुजरात में लगातार भाजपा सरकार में आ रही है।

गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में हुआ प्रयोग


  1. मध्यप्रदेश में यह प्रयोग पहले उमा भारती और फिर शिवराजसिंह चौहान के साथ आरंभ हुआ। दोनों ही मुख्यमंत्री ओबीसी से आते हैं। इनके समय अध्यक्ष पहले प्रभात झा और अभी शिवराजसिंह चौहान सवर्ण जाति के हैं।
  2. छत्तीसढ़ में मुख्यमंत्री डा रमनसिंह सामान्य वर्ग के हैं तो प्रदेशाध्यक्ष रामसेवक पैकरा एसटी के हैं। कारण कि ट्रायबल बहुल राज्य है।
  3. राजस्थान में वसुंधरा सवर्ण वर्ग की हैं तो अब नया अध्यक्ष ओबीसी से ही बनेगा। चुनाव में वसुंधरा ही पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष थीं।
  4. आगामी लोकसभा चुनाव को ही देख लें प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ओबीसी हैं तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह सामान्य वर्ग के हैं।
  5. गुजरात में मोदी के साथ अध्यक्ष पुरूषोत्तम रूपाला और वर्तमान में आरसी फलदू हैं।










लालकिले से (भाग-९) मोदी का मास्टर स्ट्रोक, खेला पिछड़े वर्ग के प्रधानमंत्री का कार्ड


लालकिले से  (भाग-9)

मोदी का मास्टर स्ट्रोक, खेला पिछड़े वर्ग के प्रधानमंत्री का कार्ड

ब्राह्मण, बनियों, ठाकुरों के साथ ४१ फीसदी ओबीसी वोटों   

की  जुगलबंदी का फार्मूला


विरोधी सोच रहे थे कि २०१४ के लोकसभा चुनाव के लिए नरेन्द्र मोदी उत्तरप्रदेश और बिहार में हिन्दू और मुस्लिम के आधार पर वोटों का धु्रवीकरण करेंगे। लेकिन हुआ इससे ठीक उल्टा। मोदी ने सभी की सोच को चकमा देते हए आज नई दिल्ली के रामलीला मैदान से ओबीसी प्रधानमंत्री का ब्रहास्त्र चल दिया है। इससे सभी पार्टियां खासकर बसपा, सपा, जनता दल और राजद और चारों खाने चित हो गईं हैं। आज मोदी ने खुद कहा कि  वे पिछड़ी जाति में पैदा हुए हैं इसलिए उच्च वर्ग में पैदा हुए वंशवादी लोग उनके खिलाफ चुनाव लडऩा अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। मोदी मोड़ वणिक जाति के हैं। अगर मोदी प्रधानमंत्री चुने गए तो वे पिछड़ी जाति से इस पद पर पंंहुचने वाले देश पहले व्यकित होंगे। यह बड़ा विरोधाभास  है कि  पिछड़ी जाति के नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहीं जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने बनाया है। यह आरएसएस की सोश्यल इंजीनियरिंग की कार्ययोजना का ही एक हिस्सा है। इसके लिए आरएसएस की टीमें अभी भी ओबीसी वाले क्षेत्रों में जुड़ी हुई हैं। मंडल आयो की १९८० की रिपोर्ट के अनुसार देश में ५२ फीसदी ओबीसी और नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन के २००६ के आंकडों के अनुसार देश की आबादी में ४१ प्रतिशत ओबीसी है। खैर इन दोनों आंकडो को लेकर विवाद भी है। पर एक बात तो तय है है कि देश की आधी आबादी ओबीसी की है। यानी 41 प्रतिशत ओबीसी और 21 प्रतिशत सवर्ण वोटों यानी कुल आबादी के 62 फीसदी हिस्से को लेकर पर नरेन्द्र मोदी और आरएसएस की राजनीति केन्द्रित है।

नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन के २००६ के आंकडों के अनुसार देश की आबादी में ४१ प्रतिशत ओबीसी,२० प्रतिशत एससी और ९ प्रतिशत एसटी और शेष अन्य वर्ग के हैं। अन्य में 21 फीसदी सवर्ण जातियां और शेष मुस्लिम हैं। इसमें से लगभग ३०  प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या, यूपी, बिहार, उड़ीसा,झारखंड, बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में रहती है।(देखे इस पोस्ट के साथ जातियों की संख्या का प्रतिशत चार्ट)
भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को जबसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तभी से देशभर खासकर यूपी, बिहार और राजस्थान के जातिवादी समाज में अंडर कंरट है। पिछड़े वर्ग के लोग मोदी की उम्मीदवारी को लेकर वे खासे उत्साहित हैं। दो माह पूर्व हांगकांग की एक बड़ी इनवेस्ट कंपनी के चुनावी सर्वे के अनुसार यूपी में उस समय भाजपा को ४० से ४२ सीटें मिल रही थीं। अब जबकि मोदी ने खुले तौर पर ओबीसी का कार्ड खेल दिया है और वे बनारस या पूर्वी यूपी की किसी सीट से चुनाव लड़ भी सकते हैं ऐसे में ओबीसी वोट और तेजी से भाजपा की ओर आएंगे। खासकर यूपी-बिहार- महाराष्ट्र में बसपा, सपा, कांग्रेेस व आरजेडी और दक्षिण में ओबीसी के वोट अन्य पार्टियों से खिसककर भाजपा के पास आएंगे। आपको यह बता दूं कि ओबीसी वोटों के कारण ही विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है।
मोदी के इस ब्रहस्त्र से यूपी में माया, मुलायम और बिहार में नीतिश, लालू के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा टूट सकता है। भाजपा के साथ सवर्ण वर्ग के लोग तो थे ही। उसे ब्राह्मण, बनियों और ठाकुरों की पार्टी तो कहा ही जाता था। जब से ओबीसी वर्ग   भाजपा से जुड़ा हैं जनसंघ से जमाने से चल रहा सत्ता का अकाल टूट गया है। गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की लगातार सत्ता में आने के पीछे सुशासन से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक का हाथ है। मोदी को भाजपा में ही चुनौती बन रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी ओबीसी से ही आते हैं। यानी हिन्दुओं में बहुसंख्यक ओबीसी वर्ग का एक व्यक्ति अब प्रधानमंत्री का उम्मीदवार है। यही लोकतंत्र की विजय है।






गुरुवार, 16 जनवरी 2014

लाल किले से भाग-८ कांग्रेस उम्मीद से है, केन्द्र में भी केजरीवाल को समर्थन देकर बनवाएंगे तीसरे मोर्चे की सरकार

लाल किले से भाग-८

कांग्रेस उम्मीद से है, केन्द्र में भी केजरीवाल को समर्थन देकर बनवाएंगे तीसरे मोर्चे की सरकार
तथ्य- 1 गुरूवार को कांग्रेस की ओर से घोषणा की गई कि राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रचार कमेटी के प्रमुख रहेंगे लेकिन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं रहेंगे।
तथ्य- 2 यह घोषणा की गई कि कांग्रेसियों को पता है कि उनका नेता कौन है इसलिए उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
तथ्य- 3 प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने अपनी अलविदा प्रेस कांन्फे्रन्स में कहा कि वे अगली बार प्रधानमंत्री नहंी होंगे पर साथ ही उन्होंने यह भी इशारा किया कि अब कांग्रेस की जिम्मेदारी राहुल संभालेंगे।

कांग्रेस ने गुरुवार को बड़ी ही चतुराई से राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कैम्पेनिंग कमेटी का चेअरमैन बना दिया। इस घोषणा के साथ कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि संसदीय लोकतंत्र में चुनाव परिणाम आने के बाद संसदीय दल अपने नेता का चुनाव करता है। वैसे भी कांग्रेसियों को पता है कि उनका नेता कौन है। कांग्रेस ने इस फैसले से जता दिया है कि उसने एक तरह से हार मान ली है। यानी उसका तो खेल बिगड़ ही गया है पर अब वह दूसरों यानी मोदी का खेल बिगाडऩा चाहती है। इसमें वह केजरीवाल की मदद से भाजपा को तीस से चालीस सीटों का नुकसान करने की योजना बना रही है। अगर ऐसा हो जाता है तो वह केजरीवाल के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनवा सकती है। कांग्रेस इस कोशिश में भी है कि वह अपनी सीटों का आंकड़ा सौ से पार कर ले। अभी की स्थिति में कांग्रेस के 50 से 60 सीटों के आसपास सिमटने के संकेत हैं। अगर कांग्रेस अपनी स्थिति सुधार कर सौ सीटों के आस-पास आ गई जिसकी कि संभावना कम ही है तो वह बार्गेनिंग करने की स्थिति में रहेगी।
१. कांग्रेस अब जीतने के लिए नहीं खेलेगी- कांग्रेस की इस घोषणा से साफ है वह मैच बचाने के लिए खेलेगी। कैसे भी करके सौ या सवा सौ सीटें प्राप्त कर ली जाएं ताकि साम्प्रदायिकता के नाम पर भाजपा को रोका जा सके। इसमे उसे सबसे ज्यादा उम्मीद आप से ही है। अगर आप 10 से 15 सीटें लाती है तो कांग्रेस का गेम बिगड़ सकता है लेकिन अगर वह 30 से 40 सीटें लाती है तो फिर वह केजरीवाल को ही प्रधानमंत्री बनवा सकती है। इस बीच राहुल गांधी विपक्ष के नेता के रूप में काफी कुछ सीख चुके होंगे। इसके बाद वे प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी करेंगे।
२. मोदी बनाम राहुल बनाम केजरीवाल से बचाव-   कांग्रेस ने राहुल को प्रधानमंत्री पद की रेस में  मोदी बनाम राहुल बनाम केजरीवाल के मीडिया में चलने वाले प्रचार से बचने की कोशिश की है।  आप पार्टी की दिल्ली में सरकार बनने के बाद मीडिया में आए सर्वेक्षणों में राहुल तीसरे नंबर पर खिसक गए हैं। पहले नंबर पर मोदी ही हैं पर दूसरे नंबर पर केजरीवाल आ गए हैं। इसलिए भी कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार घोषित नहीं किया। कारण कि कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भी चुनाव लडऩा है। यानी राहुल अपनी तैयारी 2016 या 17 के संभावित मध्यावधि चुनाव या 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर है।
. मोदी बनाम केजरीवाल को हवा देगी कांग्रेस - अब चुनावी समर को सीधे मोदी बनाम केजरीवाल बनाने में जुटेगी कांग्रेस। ताकि भाजपा की सीटेंं कम हों। इसमें कांग्रेस का गेम यह है कि अगर आम आदमी पार्टी तीस से चालीस सीटें भी ले आती है तो आप, ममता, माया, मुलायम, नीतिश और वामपंथियों को सेक्युलर छाते के नीचे एकत्रित कर बाहर समर्थन  देकर  देवेगौड़ा टाइप सरकार बनवा दी जाए और 2016 में फिर लोकसभा का चुनाव करवा दिया। उसी पुराने राग के साथ कि गैर कांग्रेसी दल सरकार चलाने में नाकाम रहे हैं इसलिए स्थिरता के नाम पर कांग्रेस को वोट दें।
४. हार का ठीकरा मनमोहन के माथे- कांग्रेस ने अपनी संभावित हार का ठीकरा भी प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के माथे फोडऩा चाहती है। इसी कारण भी उसने राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। जब हारना है ही तो अपने सबसे बेहतर आदमी को सबसे कठिन परीक्षा के समय दांव पर क्यों लगाया जाए। अभी राहुल की पोलिटिकल टीआरपी मोदी और केजरीवाल से काफी कम आ रही है। लिहाजा अपने युवराज के लिए कांगे्रस कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं है।










बुधवार, 15 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-७) केजरीवाल का सोश्यल आडिट : उतरने लगा है नैतिकता का मुखौटा


 लालकिले से  (भाग-7)

केजरीवाल का सोश्यल आडिट : उतरने लगा              है नैतिकता का मुखौटा

अरिवंद केजरीवाल एक मुखौटा नैतिकता का। जिसने नैतिकता को हथियार बनाकर दिल्ली राज्य के तख्त को हासिल कर लिया। कांग्रेस जैसी एक सदी पुरानी पार्टी को दहाई के आंकड़े के लिए तरसा दिया। लेकिन वे अब उन मुद्दों से भटकने लगे हैं या गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं जिन के आधार पर उनकी पार्टी को २८  सीटें मिली थीं। पर शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार, कांग्रेस से समर्थन, बिजली के दाम कम करने, सरकारी बंगला, बड़ी गाडिय़ां के मुद्दे पर उनका नजरिया बदल रहा है। सिर्फ  लाल बत्ती से परहेज, एफडीआई और बिजली कंपनियों के आडिट पर ही वे कायम हैं। चूंकि वे इस मुद्दों पर चुनाव जीते हैं इसलिए इन मुद्दों का प्रस्तुत है उनका शोश्यल आडिट।

शीला दीक्षित पर ऐसे पलटे की ३७० पेज के सबुत खो गए

चुनाव से पहले- शीला दीक्षित चोर और बिजली कंपनियों की दलाल हैं। मेरे पास उनके खिलाफ ३७० पेजों का बड़  सबूत है।
चुनाव के बाद - विधानसभा में बोले कि अगर हर्षवर्धन जी के पास शीला के खिलाफ कोई सबुत हैं तो हमें दें तभी इनके खिलाफ कार्रवाई हो सकेगी।
टिप्पणी - भई आपके ३७० पेजों के सबुत कहां गए। या तो वे थे ही नहीं अथवा खो गए या उन पर डील हो गई। मान लें कि आपके पास सबुत नहीं थे और आपने यंू ही बोल दिया था तो शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट देख लें जिसमें कामनवेल्थ घोटाले के सारे सूत्र जमा हैं।

कांग्रेस से समर्थन पर ऐस फिसले कि फिसलते चले गए

चुनाव से पहले- बच्चों की कमस खाता हूं कि न तो कांग्रेस से समर्थन लेंगे और न ही देंगे।
चुनाव के बाद - जनमत संग्रह की नौटंकी कर कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार  बना ली। बहुमत साबित कर दिया, स्पीकर भी बनवा लिया।
टिप्पणी - जिस कांग्रेस के खिलाफ आपको वोट मिला, जिस कांग्रेस के कुशासन से जनता त्रस्त थी उसी को एसएमएस और सभाओं के पोल में ऐसा उलझाया कि जैसे दिल्ली में दूसरा चुनाव हो रहा हो। ताकि कहीं से भी यह संदेश न जाए कि कांग्रेस और आप की मिली भगत है।

बिजली दरें- कंपनियों को सब्सिडी के नाम पर दे दिया आम जनता का पैसा

चुनाव से पहले- शीला दीक्षित की बिजली कंपनियों से सांठगांठ है। इसलिए हम आडिट करवाकर बिजली सस्ती करवाएंगे।
चुनाव के बाद - २०१३ के आखिरी दिन घोषण की कि २०० और ४०० यूनिट के स्लाट में ५० फीसदी सब्सिडी दी जाएगी।
टिप्पणी - कांग्रेस ने जुलाई में प्रति यूनिट १.२० और १. ०० रूपए की सब्सिडी दी हई है वह इस पचास फीसदी  में शामिल है। यानी कुल छूट औसतन २५ फीसदी बैठेगी। अगर सरकार जनता का पैसा बिजली कंपनियों को दे देगी तो विकास के लिए पैसा कहां से आएगा।

सरकार और अल्पमत की सरकार

चुनाव से पहले- शीला दीक्षित और केजरीवाल में चुनाव से पहले समझौता हुआ था कि केजरीवाल उन्हें बाहर से समर्थन देंगे और बाद में उन्हें दिल्ली का उपमुख्यमंत्री  बना दिया जाएगा। तब कांग्रेस का अनुमान था कि उसे २५ से ३० सीटें मिल सकती हैं। आप को ६ से ८ सीटों का अनुमान था। आप को खड़ा करने का मकसद यहीं था कि भाजपा को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिले और एंटी कांग्रेस वोट आप को चला जाए।
चुनाव के बाद - कांग्रेस की सोच के बिल्कुल उल्टा हो गया था। कांग्रेस ने जितनी सीटें अपने लिए सोची थीं उतनी आप को मिल गईं और आप के लिए जितनी सीटें सोचीं थी उतनी उसे मिल गईं। यानी रोल चेंज हो गया। इसीलिए कांग्रेस ने आनन-फानन में आप को बिना शर्त समर्थन दे दिया।
टिप्पणी - विश्वासमत से पहले तक कुत्ते-बिल्ली की तरह झगड़ रहे आप और कांग्रेस की केमिस्ट्री देखने लायक थी। दोनों एक दूसरे को पूरा महत्व रहे थे। इसलिए केजरीवाल ने विश्वास मत के दौरान शीला सरकार के भ्रष्टाचार पर अपने तेवर ढीले कर दिए हैं। देखना है कि ये तेवर कितने दिन ढीले रहते हैं। कारण कि फ्लिप, फ्लाप, फ्लिप करने यानी लगातार पलटियां खाने में केजरीवाल का कोई सानी नहीं है।

बड़ा बंगला और कार के मुदे

चुनाव से पहले- चुनाव से पहले कहा था कि वे बड़े बंगले और वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं। इसलिए लालबत्ती वाले वाहन नहीं लेंगे।
चुनाव के बाद - भगवानदास पर दो बंगले लेने का मन बनाया। एक बंगला साढ़े चार हजार वर्ग फीट का। डीडीए ने रंग रोगन का भी काम शुरू कर दिया। इस इलाके में जमीन की बाजार कीमत २ लाख रूपए वर्गफीट है। इस हिसाब से जमीन ही १८० करोड़ रूपए की है। ६हजार वर्गफीट  निमार्ण की कीमत १५०० रूपए वर्ग फीट के हिसाब से ९० लाख रूपए होती है। यानी जिन दो डूप्लेक्स बंगलो उन्होंने पसंद किए थे उनकी बाजार कीमत ही लगभग १८१ करोड़ रूपए है। खैर मीडिया में खबरें आने के बाद हुई किरकिरी के बाद उन्होंने ये बंगले लेने से मना कर दिया। उनके मंत्रियों को लक्जरी टोयटा इनोवा कारें दी गईं। इस पर केजरीवाल का कहना था उन्होंने लाल बत्तियों वाली गाडिय़ां लेने से मना किया था गाडिय़ों का थोड़े मना किया था। जै हो आपकी प्रभु। कैसे रंग बदल रहे हैं।
टिप्पणी - सवाल बंगले- गाड़ी का नहीं है। अगर आप सरकार में हैं तो लें ही पर उनका दुरूपयोग न करें। अगर आपका बंगला जनता के लिए खुला है तो फिर इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता कि वह कितना बड़ा है। मुख्यमंत्री पद की गरिमा और व्यवस्थाओं के लिए बड़ा बंगला तो चाहिए। सवाल यह है कि फिर मीडिया इस बात का आडिट क्यों कर रहा है तो जवाब यह है कि बंगला-गाड़ी नहीं लेने वाली बात खुद केजरीवाल ने की थी और अब से ही उससे दूर होते नजर आ रहे हैं ऐसे में आडिट लाजिमी ही है।
लोकसभा चुनाव लडऩा
शनिवार ४ दिसंबर - केजरीवाल ने कहा कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लडेंगे।
रविवार ५ दिसंबर - आप पार्टी ने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत।१४ जनवरी को खुद केजरीवाल के कहा कि लोकसभा चुनाव भाजपा और आप के बीच लड़ा जाएगा।
टिप्पणी - पहले आपस में तय कर लो, फिर चैनलों पर दिखो। ऐसी भी क्या दिखास की बीमारी है।

चलते-चलते

जनता दरबार में अफरा- तफरी के बाद केजरीवाल ने कहा कि वे अब जनता दरबार नहीं लगाएंगे। जनता अपनी समस्याएं आनलाइन और लिखित में भेज सकती है। यानी केजरी रणछोडऱाय बन गए हैं। यानी नेताओं वाली सारी बातें उनमें कूट-कूटकर भरी हुई हैं।






लालकिले से (भाग-६) टोपी की नहीं टोपी पहनाने की राजनीति


लालकिले से  (भाग-६)

टोपी की नहीं टोपी पहनाने की राजनीति

टोपी नहीं लगाने वाले प्रधानमंत्रियों ने देश को ज्यादा टोपी पहनाई है, कांग्रेस के टोपी नहीं पहनने वाले नेताओं ने ६ साल में ७ प्रधानमंत्रियों की कुर्सी छीनकर देश पर चुनाव थोपे हैं। आजादी के बाद देश में कार्यवाहक प्रधानमंत्री सहित कुल १४ व्यक्ति देश की कुर्सी पर बैठे हैं। इनमें से ७ टोपी लगाने वाले, १ पगड़ी पहनने वाला और ६ टोपी नहीं पहनने वाले थे या हैं। मनमोहनसिंह की आस्था को देखते हुए मैं उनके   बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।  अब कांग्रेस के निशाने पर अरविंद केजरीवाल हैं। अब उन्होंने उसे समर्थन की टोपी पहनाई है। श्रृंखला लालकिले से के भाग ६ में प्रस्तुत है जनता को टोपी पहनाने की राजनीति, टोपी के समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र के साथ।
१.    भारत के प्रधानमंत्रियों में पं. नेहरू, गुलजारीलाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, चौधरी चरणंिसंह, वीपी सिंह टोपी लगाते थे। सरदार मनमोहनसिंह पगड़ी पहनते हैं। ये इन लोगों की वेशवूषा का अभिन्न हिस्सा था या है।
२.    इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, चंद्रशेखर, पीबी नरसिंहाराव, एचडी देवेगौडा, इंदकुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी ने वेशवूषा के तौर पर कभी टोपी नहीं पहनी। कांग्रेसी नेताओं ने किसी खास मौके पर गांधी टोपी लगाई तो वाजपेयी संघ के कार्यक्रमों में काली टोपी पहने नजर आए।
३.    २०१४ के चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में से एक भाजपा के नरेन्द्र मोदी भी टोपी नहीं पहनते। संघ के कायक्रमों में वे अवश्य काली टोपी में नजर आते हैं। इसके अलावा उन्हें पगड़ी में फोटो  खिंचाने का शौक है। उनके पगड़ी में जितने प्रकार के फोटो हैं उतने शायद ही किसी दूसरे राजनेता के हों। एक बार तो वे हैट में भी नजर आए थे। अन्ना आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल भी टोपी लगाने लगे हैं। कांग्रेस के दावेदार राहुल गांधी भी कांग्रेस के खास कार्यक्रमों में ही गांधी टोपी में नजर आते हैं।
अन्ना आंदोलन के बाद गांधी टोपी (वास्तव में  यह कुमाउंनी या खानदेशी टोपी है ) राजनीति के केन्द्र में है। हर किसी में टोपी लगाने की होड़ मची हुई। पर लोग यह बात भूल चुके हैं टोपी, पगड़ी या सांफा हिन्दुस्तानी समाज में सदैव से ही सम्मान का प्रतीक रही है। इसलिए यह कहावत भी बनी कि उसकी टोपी या पगडी़ मत उछालो। आजादी के आंदोलन और आजादी के बाद ८० के दशक तक टोपी वाले नेताओं ने देश को संभाला। उसके बाद दौर आरंभ हुआ बगैर टोपी वाले नेताओं का, वीपी सिंह के अपवाद को छोडक़र। इन्होंने देश को टोपी पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वाजपेयी अपवाद हो सकते हैं। देश को आजाद हुए ६६ साल हो चुके हैं। इसमें कांग्रेस ने ५३ साल और गैर कांग्रेसी दलों में १३ साल राज किया। इन १३ में से भी ६ साल भाजपा के अटलबिहारी वाजपेयी ने राज किया। बाकी के ६ सालों में कांग्रेस ने मोराराजी देसाई (१९७९), चौधरी चरणसिंह(१९८०), वीपी ंिसहं(१९९०), चंद्रशेखर (१९९१), अटलबिहारी वाजपेयी(१९९६), एचडी देवेगौड़ा (१९९७)और इंद्रकुमार गुजराल (१९९८)की सरकार गिराईं। यानी ६ साल में ७ सरकार गिराईं। इनमें से चार प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह , चंद्रशेखर, देवेगौड़ा और गुजरात सीधे-सीधे कांग्रेस के  समर्थन की बैशाखी पर चल रहे थे। मोरारजी, वीपी ंिसंह और अटलबिहारी वाजपेयी को गिराने का खेल कांग्रेस ने ही रचा था। वीपी सिंह सरकार को गिराने में भाजपा भी जिम्मेदार थी
यानी सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने सदैव जनता को टोपी पहनाई है। कभी भी किसी गैर कांग्रेसी सरकार को कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया। वाजपेयी को छोडक़र कोई भी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। कार्यकाल को छोड़ो पूरे ३६५ दिन भी गद्दी पर नहीं बैठ पाया। कांग्रेस का समर्थन चरणसिंह को १७० दिन,चंद्रशेखर को २२३  देवेगौड़ा को ३२४ और गुजराल को ३३२ दिन रहा। गैर भाजपा सरकारों में कांग्रेस ने मोरारजी देसाई की सरकार को २ साल १२६ दिन, वीपी सिंह को ३४३ दिन और पहली बार की वाजपेयी सरकार को १६ दिनों में गिरा दिया। कांग्रेस ने गैर कांग्रेसी सरकारों में कोई न कोई चरणसिंह, चंद्रशेखर या देवेगौड़ा हमेशा की खाजे रखा ताकि समय आने पर काम आ सके।
अब कांग्रेस ने समर्थन के नाम पर अरविंद केजरीवाल को टोपी पहनाई है। पुराने डेटा के आधार पर केजरीवाल मान सकते हैं कि उन्हें कम से कम ३४३ दिन का समर्थन तो मिल ही सकता है। इस समर्थन की कीमत वह लोकसभा चुनाव में फिर किसी को चरणसिंह या चंद्रशेखर बनवाने की शर्त पर ले सकती है। यानी २०१४ के बाद एक और मध्यावधि चुनाव की तैयारी। अब ऐसा होता है या नहीं यह तो देश की जनता ही तय करेगी।

भारतीय समाज और आजादी के आंदोलन में टोपी

भारतीय समाज के साथ राजनीति में भी टोपी, पगड़ी और सांफे का प्रमुख स्थान रहा है। आजादी के आंदोलन में सारे आंदोलनकारी टोपी, पगड़ी  या सांफा पहनते थे। सिर्फ भगतसिंह हैट लगाते थे। कांग्रेस की तो पहचान थी यह टोपी। यहां तक कि कांग्रेस के क्रांतिकारी नेता सुभाषचन्द्र बोस तक टोपी लगाते थे। यहां तक कि आजादी के आंदोलन से जुड़े सबसे आधुनिक नेता पं. जवाहरलाल नेहरू भी टोपी लगाते और अपने नाम के आगे पं. लगाते।  तिलक की पगड़ी, मौलाना कलाम की टोपी सभी को याद होगी।

नेहरू से वीपी सिंह तक टोपी का जलवा



लालकिले से (भाग-5) इंतजार कीजिए इन चार और घोटालों का, सबसे बड़ा यमुना एक्सप्रेस वे घोटाला


लालकिले से (भाग-5)

इंतजार कीजिए इन चार और घोटालों का, सबसे

बड़ा यमुना एक्सप्रेस वे घोटाला


लोकसभा चुनाव से पहले चार बड़े घोटाले सामने आ सक ते हैं। इससे यूपीए और कांग्रेस की मुश्किलें और भी बढ़ सकती है। वैसे भी पिछले तीन दिनों में जयंती टैक्स, आपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की मदद लेने और दाउद के आदमी को बचाने जैसे आरोप आरोप कांग्रेस पर लग चुके हैं। आने वाले दिनों में ये चार मुद्दे चर्चा में रहेंगे।
1. यमुना एक्सप्रेस वे घोटाला - सीएजी अपनी अगली रिपोर्ट में भी एक नए घोटाले से परदा उठाने जा रही है। इस बार का घोटाला यमुना एक्सप्रेस का है। इसमें जमीन, मुआवजे और खास लोगों को फायदा पहुंचाने का खेल सामने आये हैं। सीएजी की रिपोर्ट अभी आई नहीं है पर सूत्रों का कहना है अधिग्रहित जमीन जिस कीमत पर निजी बिल्डरों को बेची गई उसमे अनियमितताएं की गईं हैं। रेट का क्या मामला है और यह घोटाला कितने का है यह तो फरवरी में पता चलेगा जब रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी जाएगी। पर इससे इसमें सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और बसपा सुप्रीमो मायावती निशाने पर हैं। चंूकि ये यूपीए को समर्थन दे रहे हैं इसलिए यूपीए की भी मुश्किलें बढ़ेंगी। मुलायम और माया दोनों ने यमुना एक्सप्रेस वे पर जेपी ग्रुप को जमीनें आवंटित की थीं। वैसे इस रिपोर्ट का कुछ हिस्सा लीक हो चका है। 165 किलोमीटर का 6 लेन यमुना एक्सप्रेस वे आगरा को ग्रेटर नोएडा से जोड़ता है और इस पर करीब 13 हजार करोड़ रूपए की लागत आई है। इस एक्सप्रेस वे दोनों ओर बिल्डरों को विभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीनें आवंटित की गईं। इनमें जेपी ग्रुप प्रमुख है। सीएजी के इस बात का आडिट कर रही है कि किसानों से ली गई जमीन बिल्डरों को किस रेट पर दी गई और इसके कैसे अनियमिता हुई है।
2. राबर्ट वाड्रा के जमीन घोटाले (शर्ते लागू ) - सोनिया गंाधी के दामाद और राहुल गांधी के आदरणीय जीजाश्री और प्रियंका गांधी के पतिदेव श्री वाड्रा ने राजस्थान में कई स्थानों पर जमीन घोटाले किए हैं। इसकी फाइल मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के पास पहुंच गई है। ये घोटाला कुछ-कुछ तो लोगों को पता है पर यह असल तौर पर कितना बड़ा है यह या तो खुद वाड्र जानते है या भाजपा वाले या फिर केजरीवाल। भाजपा ने इसे मोदी के कथित जासूसी कांड में बचाव के तौर पर संभाल रखा है। अगर जासूसी कांड के लिए केन्द्र सरकार की ओर से घोषित आयोग अमल में लाया जाता है तो भाजपा भी इस जमीन घोटाले को सामने लाकर उसकी जांच के लिए राजस्थान में आयोग का गठन कर सकती है। पिछले दिनों भाजपा के राजस्थान के पांच सांसदों ने बाकायदा दामाजी के जमीन घोटाले से महारानी को अवगत करवाया और जांच की मांग की। गलियारे में कुछ लोगों का यह भी मानना है कि महारानी इस कांड की जांच न करवाएं इसलिए जासूसी मामले में केन्द्र ने मोदी पर आयोग का शिकंजा कसा है। यानी तुम वाड्रा के मामले में चुप रहो और हम मोदी के मामले में।
3. क्रिकेट फिक्ंिसग और सट्टेबाजी - पूर्व गृह सचिव आरके सिंह ने क्रिकेट फिक्ंिसग और सट्टेबाजी कांड में दाउद से जुड़े एक व्यापारी को बचाने का आरोप लगाया है। दिल्ली के गलियारों में चर्चा तो यह भी इस मामले में यूपीए के एक मंत्री को भी बचाया गया है। आईबी और रा की फोन टैपिंग में उसके नाम का अंदाजा सभी को हो गया था। नाम आता इससे पहले फोन कट गया। चर्चा यह भी है कि
4. पीएमटी महाघोटाला : मध्यप्रदेश पीएमटी महाघोटाले की आग अब राजभवन तक पहुच गई है। पता चला है राजभवन के करीबी और पीएमटी घोटाले के एक मास्टर मांइड के बीच शतक से भी अधिक बार बात हुई है। एसटीएफ के पास इसका रिकार्ड मौजूद है। इस बीच पता चला है कि पीएमटी परीक्षाओं में मुन्नाभाई गैंग की शुरूआत केन्द्रीय परीक्षाओं से ही हुई। इसके बाद ये राज्यों में फैला।

लाल किले से (भाग-४) केजरी भाई जरा बताएंगे, कविराज किसकी फाच्र्यूनर में और कितने बड़े काफिले के साथ गए थे अमेठी


राहुल गांधी को घेरने के लिए सोमवार को जब कविराज अमेठी गए तो तीस लाख की फाच्र्यूनर   कार में थे। उनके आगे-पीछे तीस-चालीस कारों का काफिला था।


लाल किले से (भाग-४)

केजरी भाई जरा बताएंगे, कविराज किसकी फाच्र्यूनर में और कितने बड़े काफिले के साथ गए थे अमेठी


केजरीवाल सोमवार को जनता दरबार के मामले में एक्सपोज हुए तो उनके कविराज चेले अमेठी में। यानी आज बहुत दिन बाद केजरी एंड कंपनी बैकफुट पर दिखी। बहुत शोर सुनते थे बाजू में दिल का पर चीरा तो कतरा ए खून न निकला की तर्ज पर तामझाम वाले मामले में कविराजअमेठी में धरे गए। दोनों गुरू-चेले खूब भाषण झाड़ते थे कि हम तो वीआईपी कल्चर, तामझाम और गाडिय़ों के काफिले के विरोधी हैं। राहुल गांधी को घेरने के लिए सोमवार को जब कविराज अमेठी गए तो तीस लाख की फाच्र्यूनर कार में थे। उनके आगे-पीछे तीस-चालीस कारों का काफिला था। गुरू ज्ञान देते हैं कि वो तो सिर्फ वैगन आर में चलना चाहते हैं। ना ना करते आप के सभी मंत्रियों ने इनोवा ले ही ली तो प्लेन के बिजनेस क्लास में चलने वाले कविराज के लिए फिर कारों की क्या कमी। मेरा केजरी भाई से सवाल है कि यह कार किसकी है और काफिले में कितनी कारें थी। यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि ये मानक आपने दूसरे राजनीतिक दलों से लिए निर्धारित किए हैं। इसलिए यह नियम आप पर भी लागू होता है।
आज इलेक्ट्रानिक मीडिया लंबे समय बाद संतुलित नजर आया। गोवा से मोदी ने केजरीवाल का नाम लिए बिना मीडिया पर निशाना साधा था कि जनता को टेलीविजन वाला नेता चाहिए या धरती पर विजन वाला मामला। जैसे ही केजरीवाल ने सोमवार को घोषणा की कि वे जनता दरबार नहीं लगाएंगे चैनलोंपर उन पर सवाल उठने शुरू हो गए। इसी बीच मोदी के जनता दरबार की सफलता की कहानी और उसके फार्मेट भी चले। रही सही कसर पटना में नीतिश के दरबार में हुए हंगाने ने पूरी कर दी। इस बीच खबर आई कि हवा से चलने वाले पानी के मीटर जल बोर्ड फिर से लगा रहा है। केजरी ने मीडिया के सामने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। इस पर फिर सवाल उठने लगे हैं। आज कांग्रेस के प्रवक्ता चैनलों पर यह कहते हुए नजर आए कि बिजली के दामों में पचास प्रतिशत कमी नहीं हुई है। यानी केजरी झूठ बोल रहे हैं। इस पचास प्रतिशत कमी में शीला सरकार की दी हुई 25 से 30 फीसदी सब्सिडी भी शामिल है।
इस सब हंगामें के बीच केजरी का सबसे बेहतरीन फैसला दब गया। वह था रिटेल में एफडीआई को अनुमति देने के शीला सरकार के फैसले को पलतने का। इससे दिल्ली के लगभग 75 हजार किराना दुकानों को फायदा होगा। लेकिन नौटंकी के चलते ये तो होना ही था।
कविराज ने आज अमेठी में राहुल गांधी के लिए कुछ अच्छे जुमले सुनाए। आप भी गौर फरमाएं।
१. दुनिया के सबसे बड़े और ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा का डाक्टर भारतीय है। वे उसी से इलाज करवाते हैं। जबकि हमारी आदरणीय माताजी सोनिया गांधीजी इलाज के लिए विदेश जाती हैं। जब वे देश के बेटों पर भरोसा नहीं करती तो हम उनके बेटे पर क्यों भरोसा क्यों करें।
२. जब विदेश से लौटकर प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि वे राहुल के लिए प्रधानमंत्री का पद छोड़ सकते हैं तो यह उन हजारों भारतीय बेटों का अपमान है जो अपने सामथ्र्य के बल पर आगे बढ़े हैं।
३. देश पेन में होता है और शहजादा स्पेन में होता
हैं।

लाल किले से (भाग-3) जनता दरबार की इन तीन कहानियों से खुद तय करें करें कि कौन श्रेष्ठ है केजरीवाल, नीतिश कुमार या नरेन्द्र मोदी

लाल किले से (भाग-3)
जनता दरबार की इन तीन कहानियों से खुद तय करें करें कि कौन श्रेष्ठ है केजरीवाल, नीतिश कुमार या नरेन्द्र मोदी

चावल पकाते समय सिर्फ एक चावल को हाथ में लेते ही पता चल जाता है कि वह पका है या नहीं। सारे चावल नहीं देखने पड़ते। इसी तरह जनता दरबार के माडल की एक कहानी से आप खुद तय कर लें कि केजरी, नीतिश और मोदी में कौन बेहतर है।

इन दिनों तीन राज्यों के माडल चर्चा में हैं। पहला गुजरात, दूसरा बिहार और तीसरी दिल्ली। अब इनमें से कौन सा बेहतर है यह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और मीडिया के पंडितों के लिए बहस का विषय हो सकता है। लेकिन पिछले तीन दिनों से दिल्ली में जनता दरबार की एक असफलता के उदाहरण ने दो माडलों की पोल खोलकर रख दी। दूसरा उदाहरण सोमवार को पटना में अनायास ही सामने आ गया। इस घटनाक्रम से जब गुजरात के तीसरे माडल की तुलना हुई तो वह मीलों आगे साबित हुआ। मसलन नरेन्द्र मोदी ने आज साबित कर दिया कि प्रशासनिक व्यवस्था को कैसे बेहतर प्रबंधन के साथ चलाया जाता है। इससे देश के दो बड़े राज्यों बिहार और दिल्ली के सत्ताधीशों के जनता दरबार पर सवालिया निशान लगे और मोदी के जनता दरबार की जय होती रही। श्रृंखला लाल किले से के पहले भाग में हमने चर्चा की थी कि केजरीवाल ने कहां से क्या कापी, पेस्ट किया। इसमें जनता दरबार का भी जिक्र था पर आयडिये के कापी पेस्ट में सावधानी नहीं रखी और दुर्घटना हो गई।
पहला वाकिया केजरी की दिल्ली का है। दिल्ली की जनता को उम्मीद थी कि केजरी के जनता दरवार में उनके दु:खड़ों और परेशानियों की सुनवाई होगी। पर पहले ही दिन के दरबार में हजारों की भीड़ और बेइंतजामी के बीच से केजरी ऐसे दुम दबाकर भागे कि जनता दरबार से तौबा कर ली। सोमवार को बाकायदा मीडिया से कहा कि वे अब वे जनता दरवार नहीं लगाएंगे। जनता अपनी शिकायतें आनलाइन, कालसेंटर और लिखित में दे सकती है। वे शनिवार को सिर्फ जनता से मिलेंगे पर उनकी शिकायतें नहीं लेंगे। मिलने के लिए भी वे खुद ही इलाके तय करेंगे। केजरीवाल जी जनता को पहले भी आनलाइन और लिखित में शिकायतें देती रही है पर उनकी सुनवाई हो जब ना। सिर्फ खबरों में बने रहने के लिए जनता दरबार को कांग्रेस के इशारे पर अधिकारियों से ऐसा फेल करवाया कि केजरीवाल को छत पर चढऩे के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं सूझा।
दूसरा वाकिये में सोमवार को पटना में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दरवार में बेरोजगारों ने हंगामा किया। इनका दर्द यह था कि चयनित होने के बाद भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी जा रही है। इनकी शिकायत थी कि मुख्यमंत्री दरबार में सुनवाई नहीं हो रही है जब सुनवाई ही नहीं होती तो इसे बंद कर देना चाहिए। नीतिश का सिस्टम भी गुजरात को कापी कर बनाया गया था। इन दोनों वाकियों से पता चलता है कि सत्ता मेंआने के बाद लोग जनता को कैसे हल्के में लेते हैं।
जनता की तकलीफ को सुनते हुए उनसे मिलो, उसका समाधान करो और जनता से आप अपने हिसाब से मिलो इसमें फर्क है। पहले माडल में आप जनता से दुख- दर्द से वाकिफ होते हैं। और दूसरे में आप अपनी सुविधा से मिलते हैं अगर आप उनकी शिकायतें नहीं लेंगे तो जनता से मिलना सिर्फ एक रस्म अदायगी मात्र है। छत्तीगढ़ में रमनसिंह के जनदर्शन में आने वाले लोगों में बड़ी संख्या में वे गरीब होते हैं जिन्हें इलाज के लिए सरकार से मदद की दरकार होती है। रमनसिंह पहली प्राथमिकता से उन्हें मदद देते भी हैं।
तीसरे वाकिये में शनिवार को केजरीवार के जनता दरबार कार्यक्र्रम की असफलता के बाद मोदी के जनता दरबार स्वागत का माडल चर्चा में था। इसमें मोदी महीने में एक बार खुद शिकायतों को देखते हैं और उनके निराकरण के बारे में खुद वीडियों कान्फ्रेन्सिंग से कलेक्टर, एसपी और अन्य अधिकारियों से बात करते हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के कर्मचारी संबंधित शिकायत का समाधान होने तक फालोअप करते हैं। इसके अलावा स्वागत दरबार चार स्तरीय है। पहला राज्य स्तरीय। इसमें मुख्यमंत्री और मंत्री समस्याएं सुनते हैं। दूसरा जिला स्तरीय है इसमें कलेक्टर, तीसरा तहसील स्तरीय है इसमें तहसीलदार और चौथा ग्राम स्तरीय है इसमें सरपंच समस्याओं का निकाकरण करते हैं। सभी को पता है कि खुद मुख्यमंत्री माह के तीसरे गुरूवार को बैठते हैं और पूरे सिस्टम की समीक्षा करते हैं इसलिए कोई भी कोताई नहीं बरतता।
इसी श्रृंखला के भाग-1 में बताया था कि मोदी के सिस्टम को बिहार ने भी कापी किया है। केजरीवाल ने भी आनन-फानन में कापी किया लेकिन बिना किसी तैयारी के। कहीं से कोई अच्छे आयडिया को ग्रहण करने में हर्ज नहीं है पर आयडिया की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने उस आयडिये को कितना समझा है और उसे कितना लागू किया है।



निष्कर्ष- इन तीनों उदाहरणों के अध्ययन से पता चलता है कि योजनाएं या कानून सभी जगह होते हैं उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें कितनी शिद्दत से लागू किया गया है। जैसे चुनाव आयोग पहले भी था पर बेअसर लेकिन टीएन शेषन ने उन्हीं अधिकारों का इस्तेमाल कर अच्छे- अच्छे नेताओं और राजनतिक दलों को नाकों चने चबवा दिए और साबित किया कि चुनाव आयोग बहुत ताकतवर है। यानी सारा खेल प्रबल इच्छाशक्ति का है। यही है मोदी की सफलता का राज।

सोमवार, 13 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-२) मुस्लिम वोटों के लिए मजमा लगाने लगे मदारी

लालकिले से  (भाग-२)

मुस्लिम वोटों के लिए मजमा लगाने लगे मदारी

संविधान ने नाम पर खाई  हर कसम और प्रावधान को तोड़ रहे  देश के गृहमंत्री  सुशील शिदें और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बर्खास्तगी के लिए पर्याप्त संवैधानिक आधार हैं।
केस-1: मुजफ्फरनगर दंगों में जब सिर्फ मुस्लिम लोगों के मुआवजा देने की बात अखिलेश यादव सरकार ने की  तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी कि राज्य धर्म के आधार मुआवजा नहीं दे सकता। इसलिए यूपी सरकार को सभी पीडि़तों को मजबूरी में मुआवजा देना पड़ा।
केस-२: केन्द्रीय केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने राज्यों से फिर कहा है कि किसी की गिर$फतारी से पहले यह जांच लें कि इसमें कोई मुस्लिम तो नहीं है।
शहर में तनाव है क्या, पता करो चुनाव है क्या की तर्ज पर लोकसभा चुनाव सामने आते ही मुस्लिम वोटों के लिए राजनीति के बाजीगर मजमा लगाने,सजाने हैं। क्या आपको पता है कि धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति करना संविधान की प्रस्तावना, एवं  पद और गोपनीयता की शपथ के खिलाफ और जनप्रतिनिधत्व कानून के खिलाफ है। आज इस मुद्दे को इसलिए रख रहा हूं कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए आज संविधान और शपथ का द्रोपदी की तरह चीरहरण किया जा रहा है। भारत में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका सर्वोच्य नहीं है। अगर कोई सर्वोच्य है तो वह है संविधान यानी कानून का शासन।  आज जब देश के प्रमुख लोग ही संविधान को तोड़ रहे हैं। ऐसे में उन्हें पद पर रहने का एक मिनट भी अधिकार नहीं है। यह वह मुद्दा है जिस पर सरकार या मंत्री को बर्खास्त किया जा सकता है। नेता तो पहल करेंगे नहंी अब सुप्रीम कोर्ट पहल कर ऐसे लोगों को बर्खास्त घोषित करे। कारण कि सुुप्रीम कोर्ट के पास संविधान की रक्षा और उसका पालन सुनिश्चित कराने की शक्ति है। लोकसभा चुनाव से पहले किस- किस नेता ने मुस्लिम वोटों के लिए संविधान और शपथ तो तोड़ा उनका एक पोस्टमार्टम मेरी श्रृंखला लालकिले से के भाग-२ में प्रस्तुत है।

केन्द्र सरकार ने मुस्लिम वोटों के लिए यह किया

१.    केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने पहले विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों को कहा है कि वे आतंकवाद के मामले में जेल में बंद मुस्लिम लोगों के मामलों की समीक्षा करें।
२.    सुशील शिंदे ने फिर राज्यों से कहा है कि किसी की गिर$फतारी से पहले यह जांच लें कि इसमें कोई मुस्लिम तो नहीं है।

यहां किया संविधान और शपथ का उल्लंधन

संविधान का उल्लंधन- संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि वह पंथनिरपेक्ष है यानी विभिन्न समुदायों से पंथ के आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा। कानूनन किसी भी बेगुनाह को जेल में बंद नहीं किया जाना चाहिए। फिर वह चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम। आतंकवाद जैसे गंभीर मसले पर संविधान खुद गृहमंत्री को कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं देता। वे गुनाहगार हैं या नहीं इसका फैसला तो अदालत करेगी। हां अगर वे सचमुच कुछ करना चाहते हैं तो न्याय प्रक्रिया की गति को तेज करवा सकते हैं। जो उन्हें करवानी भी चाहिए लेकिने वे इसे छोडक़र सब कर रहे हैं।
शपथ का उल्लंधन- शिदें ने यह कहकर अपनी उस शपथ तो तोड़ा है जो उन्होंने संघ के मंत्री बनने के समय ली थी। संविधान की अुनसूची ३ और पैरा ५ के अनुसार उन्होंने जो शपथ ली थी उसमें ये बातें भी थी वे - विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखूंगा।  मैँ सभी लोगों के साथ भय या पक्षपात, राग या द्वेश के  बिना संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा। शिंदेजी आप तो संविधान  की भावना के अनुसार एक धर्म विशेष के प्रति चुनावी राग दिखा रहे हैं। पर शिदेंजी क्या दोष वे तो वहीं करते हैं जो आलाकमान कहता है। इसमें संविधान टूटता है तो टूट जाए।

उत्तरप्रदेश में तो अखिलेश ने हद ही कर दी

  1.  यूपी की अखिलेश सरकार ने घोषणा की थी कि मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम पीडि़तो को मुआवजा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार के बाद कि राज्य किसी को भी धर्म के आधार पर मुआवजा नहीं दे सकता सरकार को सभी पीडि़तों को मुआवजा देने का फैसला करना पड़ा।
  2.  मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम आरोपियों को छोडऩे पर यूपी सरकार विचार कर रही है।
  3.  मुजफ्फरनगर दंगों के पांच हजार से भी कम शरणार्थी शिविरों में सोनिया, राहुल, मनमोहन, लालू सहित सभी नेता जा चुके हैं पर 3० साल से विस्थापिम पांच लाख कश्मीरी पंडितों के शिविरों में इनमें से एक भी नेता नहीं गया।

यहां किया संविधान और शपथ का उल्लंधन

  1. मुजफ्फरनगर दंगों में जब सिर्फ मुस्लिम लोगों को मुआवजा देने की बात आई तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई थी कि राज्य धर्म के आधार मुआवजा नहीं दे सकता। इसलिए यूपी सरकार को सभी पीडि़तों को मजबूरी में मुआवजा देना पड़ा। यह संविधान के सेक्यूलर ढांचे और उस शपथ के खिलाफ है जिसमें सभी के साथ न्याय करने की बात कही गई है।
  2. मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम आरोपियों को छोडऩे का विचार फिर संविधान और शपथ के खिलाफ जाता है।
  3. मुजफ्फरनगर दंगों के 5000 से भी कम शरणार्थियों से  राजनीतिक दल के नेताओं का विशेष राग और 5 लाख कश्मीरी पंडितों की उपेक्षा दर्शाती है कि संविधान की प्रस्तावना और शपथ के कथन के अनुसार स्टेट और उसके मंत्री लोगों से भेदभाव कर रहे हैं।

आम आदमी पार्टी

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले साम्प्रदायिकता के आरोपों से घिरे मौलाना तौकीर रजा खान का समर्थन लेने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी गए। तब तो केजरीवाल किसी पद पर नहीं थे और न ही उन्होंने संविधान के नाम की कमस खाई थी। अपने आप को नैतिकता का पुरोधा कहने वाले केजरीवाल एक नागरिक होने के नाते संविधान को कैसे तोड़ सकते हैं।
अंतंत :  सुशील शिंदे करें भी क्या करें अब संविधान को मानें या आलाकमान को। उनके हालात पर ये शेर ही काफी है।
ये बदन से नहीं जेहन से अपाहिज हैं, वही करेंगे जो रहनुमा बताएगा।


रविवार, 12 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-1) कापी, पेस्ट और पिपली लाइव से बन गया केजरीवाल का दिल्ली माडल


लालकिले से (भाग-1)

                           कापी, पेस्ट और पिपली लाइव से बन गया                                    केजरीवाल   का दिल्ली माडल       

  केजरीवाल ने बिजली कपंनी का आडिट, वार्डसभाएं, जनता दरबार, एंटीकरप्शन हैल्प लाइन, सस्ती बिजली के ५ फंडे, ३ भाजपाशासित राज्यों से कापी किए हैं।

  कांग्रेस के महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के दावानल जैसे गुस्से को डाइवर्ट करने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल का हेल्पलाइन नंबर, जनता दरबार, बिजली के बिलों में कटौती को पिपली लाइव की तर्ज पर टीवी चैनल ऐसे दिखा रहे हैं जैसे कि यह देश में पहली और सिर्फ पहली बार हो रहा हो। पर ऐसा है नहीं केजरीवाल ने भाजपा शासित राज्यों में गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गोवा से पांच चीजें कापी की और पेस्ट करके दिल्ली में लागू कर दीं। देखें कहां से क्या चुराया। चूंकि मैंने मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात में पत्रकार के तौर पर पिछले १३ साल गुजारे हैं इसलिए ये मेरी निगाह में सबसे पहले आया। इसलिए आज से लोकसभा चुनाव तक राजनीति की हर छोटी- बड़ी बात का विश्लेषण पढ़े मेरी विशेष चुनाव श्रृंखला- लालकिले से.. आज प्रस्तुत है इसकी पहली कड़ी। जिसमें कापी, पेस्ट का पोस्टमार्टम किया गया है। वैसे अच्छी चीजें कहीं से भी ली जा सकती हैं इस पर कोई रोक नहीं है पर मेरी आपत्ति है पेस्ट करके इसे अपना बताने पर। देखें कहां से क्या कापी,पेस्ट किया।
  1. गुजरात से चुराया- जनता दरबार, एंटीकरपश्न हेल्पलाइन।
  2. मध्यप्रदेश से चुराया- बिजली कंपनियों का आडिट और वार्ड सभाओं का रसायन।
  3. छत्तीसगढ़ और गोवा से चुराया-सस्ती बिजली का फार्मूला और जनता दरबार।

गुजरात से यह-यह किया कापी

स्वागत: जनता से सीधे मुलाकात के कार्यक्रम को जनता दरबार के रूप में खासकर राज्यों के मुख्यमंत्री सालों से चला रहे हैं लेकिन इसे सही आकार दिया गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। यह गांधीनगर सचिवालय में १३ साल से प्रति मंगलवार को चल रहा है। उसमें भी पिछले दस सालों यानी २००३ से यह स्वागत के नाम से व्यवस्थित और संगठित तौर पर चल रहा है।गांधीनगर जाने के लिए उस दिन बसें भी चलती है, १० रूपए में वहां खाना भी मिलता है। मोदी सहित सारे मंत्री अपने-अपने कक्षों में जनता की समस्याएं व्यवस्थित रूप से सुनते हैं। इस नाम से पोर्टल भी है जिसमें आप अपनी समस्याओं के स्थिति के बारे में जान सकते हैं। मोदी का मुख्यमंत्री सचिवालय गुणवत्ता की हिसाब से आईएसओ-९००१ प्रमाण पत्र प्राप्त है।
http://swagat.gujarat.gov.in/
हेल्पलाइन- गुजरात में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पांच साल पहले हेल्पलाइन नंबर१८००२३३४४४४४ है। इसके लिए अलग से पूरा पुलिस महकमा तैनात है। इसके बाद गुजरात में भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आई है।
ये ये हैं इस माडल के फालोअर -
छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और पिछले १० साल से रमनसिंह प्रति गुरूवार को जनदर्शन में लोगों से मिलते हैं। गुजरात की तर्ज पर यहां पर जनदर्शन का पोर्टल है। उसमें जनता को उसकी शिकायतों के समाधान की स्थिति पता चलती है।
http://cg.nic.in/jandarshan/
बिहार के मुख्यमंत्री ने भी मोदी की ही तर्ज पर पोर्टल और हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। वे मोदी की तर्ज पर लोगों से मिलते है। जेडीयू से अलग होने के बाद भाजपा नेता सुशील मोदी भी अपना दरबार लगाते हैं।
http://www.bpgrs.in/
BPGRS/Janta Darbar Helpline No. 0612-2201000.
फालोअर- करंट फालोअर हैं केजरीवाल

मध्यप्रदेश से यह-यह किया पेस्ट

बिजली कंपनियों का आडिट: बिजली कंपनियों का आडिट शिवराजसिंह ने आरंभ किया था। इसकी रिपोर्ट आ चुकी है। इसमें बताया गया है कि प्रदेश में कोयले से जितनी बिजली बननी चाहिए थी नहीं बन रही है। इस रिपार्ट पर अब राज्य सरकार को फैसला करना है।
वार्ड सभाएं: वार्ड सभाओं का फंडा मध्यप्रदेश और उसमें भी इंदौर से निकला है। तत्कालीन महापौर और वर्तमान यूडीएच मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने २००४ इंदौर में प्रयोग के तौर इसकी शुरूआत की थी। इसका मकसद था मोहल्ले के विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना था। बाद में २००९ में इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया। कुछ वार्डसभाएं बनीं भी थीं पर इस दौर यूडीएच मंत्री रहे बाबूलाल गौर की लापरवाही से वार्ड सभाएं नहीं बन पाईं। इस बार विजयवर्गीय फिर यूडीएच मंत्री बने हैं इसलिए वार्ड सभाओं पर वे फिर से काम आरंभ कर रहे हैं।
फालोअर- इस माडल के भी करंट फालोअर हैं केजरीवाल।

छत्तीसगढ़ और गोवा से लिया सस्ती बिजली का आयडिया

गोवा और छत्तीसगढ़ में १०० या २०० यूनिट के लिए बिजली के रेट लगभग पौने दो रूपए प्रति यूनिट हैं।
फालोअर- इसके भी करंट फालोअर हैं केजरीवाल। सब्सिडी देकर रेट कम किए। केजरीवाल ने घोषणा की कि उन्होंने ५० फीसदी रेट कम किए हैं पर इसमें शीला दीक्षित की सब्सिडी भी शामिल है। शीला दीक्षित के जुलाई में १०० यूनिट तक १.२० और २०० यूनिट तक १ रूपए प्रति यूनिट की सब्सिडी दी थी। इस हिसाब से केजरीवाल ने २० से २५ फीसदी फीसदी ही राहत दी है वो भी सभी को नहीं।
सबसे बेहतर आयडिया- जनता की शिकायतों पर सबसे किफायती और बेहतर सिस्टम मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और भोपाल के पूर्व भाजपा सांसद सुशीलचंद्र वर्मा ने बनाया था। वे अपने यहां आने वाली शिकायतों को संबंधित विभागों और लोगों को अपने लेटर पर पत्र के साथ भेजते थे और इसकी सूचना पोस्टकार्ड से आम आदमी तक भेजते थे।
चलते चलते- राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी मध्यप्रदेश से तीर्थदर्शन योजना कापी की थी पर देखा हश्र क्या हुआ।