लाल किले से भाग-८
कांग्रेस उम्मीद से है, केन्द्र में भी केजरीवाल को समर्थन देकर बनवाएंगे तीसरे मोर्चे की सरकार
तथ्य- 1 गुरूवार को कांग्रेस की ओर से घोषणा की गई कि राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रचार कमेटी के प्रमुख रहेंगे लेकिन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं रहेंगे।तथ्य- 2 यह घोषणा की गई कि कांग्रेसियों को पता है कि उनका नेता कौन है इसलिए उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
तथ्य- 3 प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने अपनी अलविदा प्रेस कांन्फे्रन्स में कहा कि वे अगली बार प्रधानमंत्री नहंी होंगे पर साथ ही उन्होंने यह भी इशारा किया कि अब कांग्रेस की जिम्मेदारी राहुल संभालेंगे।

१. कांग्रेस अब जीतने के लिए नहीं खेलेगी- कांग्रेस की इस घोषणा से साफ है वह मैच बचाने के लिए खेलेगी। कैसे भी करके सौ या सवा सौ सीटें प्राप्त कर ली जाएं ताकि साम्प्रदायिकता के नाम पर भाजपा को रोका जा सके। इसमे उसे सबसे ज्यादा उम्मीद आप से ही है। अगर आप 10 से 15 सीटें लाती है तो कांग्रेस का गेम बिगड़ सकता है लेकिन अगर वह 30 से 40 सीटें लाती है तो फिर वह केजरीवाल को ही प्रधानमंत्री बनवा सकती है। इस बीच राहुल गांधी विपक्ष के नेता के रूप में काफी कुछ सीख चुके होंगे। इसके बाद वे प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी करेंगे।
२. मोदी बनाम राहुल बनाम केजरीवाल से बचाव- कांग्रेस ने राहुल को प्रधानमंत्री पद की रेस में मोदी बनाम राहुल बनाम केजरीवाल के मीडिया में चलने वाले प्रचार से बचने की कोशिश की है। आप पार्टी की दिल्ली में सरकार बनने के बाद मीडिया में आए सर्वेक्षणों में राहुल तीसरे नंबर पर खिसक गए हैं। पहले नंबर पर मोदी ही हैं पर दूसरे नंबर पर केजरीवाल आ गए हैं। इसलिए भी कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार घोषित नहीं किया। कारण कि कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भी चुनाव लडऩा है। यानी राहुल अपनी तैयारी 2016 या 17 के संभावित मध्यावधि चुनाव या 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर है।
३. मोदी बनाम केजरीवाल को हवा देगी कांग्रेस - अब चुनावी समर को सीधे मोदी बनाम केजरीवाल बनाने में जुटेगी कांग्रेस। ताकि भाजपा की सीटेंं कम हों। इसमें कांग्रेस का गेम यह है कि अगर आम आदमी पार्टी तीस से चालीस सीटें भी ले आती है तो आप, ममता, माया, मुलायम, नीतिश और वामपंथियों को सेक्युलर छाते के नीचे एकत्रित कर बाहर समर्थन देकर देवेगौड़ा टाइप सरकार बनवा दी जाए और 2016 में फिर लोकसभा का चुनाव करवा दिया। उसी पुराने राग के साथ कि गैर कांग्रेसी दल सरकार चलाने में नाकाम रहे हैं इसलिए स्थिरता के नाम पर कांग्रेस को वोट दें।
४. हार का ठीकरा मनमोहन के माथे- कांग्रेस ने अपनी संभावित हार का ठीकरा भी प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के माथे फोडऩा चाहती है। इसी कारण भी उसने राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। जब हारना है ही तो अपने सबसे बेहतर आदमी को सबसे कठिन परीक्षा के समय दांव पर क्यों लगाया जाए। अभी राहुल की पोलिटिकल टीआरपी मोदी और केजरीवाल से काफी कम आ रही है। लिहाजा अपने युवराज के लिए कांगे्रस कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं है।
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