मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

वाजपेयी युग के ऐसे अंत की तो नहीं ही थी उम्‍मीद



बिन मौसम बरसात की तरह सोमवार शाम एक खबर आई कि जिन्‍हावादी नेता लालकष्‍ण आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्‍मीदवार होंगे। इसके कई निहितार्थ और संदेश हैं।
* पहला यह कि लोकसभा के मध्‍यावधि चुनाव कभी भी हो सकते हैं।
* दूसरा.भाजपा और एनडीए की कमान लालजी के हाल होगी।
* तीसरा गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान की पूर्व संध्‍या पर ऐसी घोषणा कर यह संदेश देने की कोशिश करना कि अगला प्रधानमंत्री गुजरात से होगा। लालजी गांधीनगर से सांसद भी हैं।
* चौथी और सबसे महत्‍वपूर्ण यह कि भारत की राजनीति से वाजपेयी युग का औपचापिरक अंत हो गया है ।
* पांचवी यह कि भाजपा की कमान अब नरमपंथी हाथों से चरमपंथी हाथों में आ गई है। यह बाद दीगर है प्रधानमंत्री पद के सपने ने इन हाथों को अपने चेहरे पर जिन्‍हावाद का मुखौटा लगाने पर मजबूर कर दिया।

भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज अपनों से ही हारा
वाजपेयी जैसे महामना का भारतीय राजनीति के शिखर ऐसी गुमनामी से ओझिल होने की खबर की किसी को उम्‍मीद नहीं थी, खुद वाजपेयी को भी नहीं। ये वे ही वाजपेयी हैं जिन्‍होंने गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के बाद नरेन्‍द्र मोदी को सीख दी थी कि मोदीजी आपने राजधर्म का पालन नहीं किया। वे भारतीय राजनीति में नेहरू युग के अंतिम राजनेता हैं। उन्‍होंने संघ के प्रचारक, पत्रकार और राजनेता के रूप में सफलताओं और अदाओं के नए मुहावरे गढे। शब्‍दों के बाणों से सारे काम्‍पीटिटर्स को ससम्‍मान धराशायी किया। हटाने के पीछे वाजपेयीजी की ढलती उम्र, खराब सेहत और खुद उनकी रजामंदी की दुहाई दी गई। भाजपा में इतना बडा फैसला हो गया तो बडे घर यानी नागपुर की भी रजामंदी रही ही होगी। यह फैसला काफी पहले ले लिया गया था। भाजपा के संसदीय बोर्ड ने संघ के इशारे पर गुजरात चुनाव से ठीक पहले इसका ऐलान कर दिया। बेहतर होगा कि इस बात का आफिशियल ऐलान करने का मौका वाजपेयी को ही दिया जाता। आरएसएस की परंपरा तो कमसे कम ऐसा ही कहती है। आरएसएस को माई बाप मानने वालों से कम से कम इस भाईचारे की तो उम्‍मीद थी ही।
भाजपा फिर लौट रही है हिन्‍दुत्‍व की ओर
इसका मतलब यह है भी है कि भाजपा हिन्‍दुत्‍व की ओर लौट रही है। भाजपा की कमान अब नरमपंथी हाथों से चरमपंथी हाथों में आ गई है। यह बाद दीगर है प्रधानमंत्री पद के सपने ने इन हाथों को अपने चेहरे पर जिन्‍हावाद का मुखौटा लगाने पर मजबूर कर दिया था। यह तो एनडीए में स्‍वीकार्यता के लिए खेले गए प्रहसन का एक अध्‍याय भी था। पिछले लोकसभा चुनाव में शायनिंग इंडिया का नारा देने के बाद पराजय की धूल चाट चुकी भाजपा को अब फिर हिन्‍दुत्‍व और विकास के घालमेल से ही उम्‍मीदें हैं। भाजपा को लगने लगा है कि न खाली हिन्‍दुत्‍व से चुनाव जीता जा सकता हैं और न हीं सिर्फ विकास से। उन्‍हें लगा क्‍यों न दोनों का घालमेल कर दिया जाए। फिलहाल इसका लिटमस टेस्‍ट गुजरात विधानसभा चुनाव में जारी है। यही कारण है कि चरमवादी लालजी, नरमपंथी अटलबिहारी वाजपेयी के उत्‍तराधिकारी होंगे। आरएसएस को भी वाजपेयी कभी भी सूट नहीं करते थे, लेकिन सर्वस्‍वीकार्यता और गठबंधने के दौर में उसे अपने इस नरमपंथी स्‍वयंसेवक को मजबूरी में देश का सीईओ बनाना पड़ा था। भाजपा विकास के नारे के साथ हिन्‍दुत्‍व की ओर लौट रही है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है नरेन्‍द्र मोदी। गुजरात में विकास ने नाम पर प्रचार अभियान चला रहे मोदी ने बीच प्रचार के दौरान पूर्व नियोजित तरीके से यू-टर्न लिया और सोहराबुद़दीन के बहाने भाजपा को वापस हिन्‍दुत्‍व की पटरी पर ला खडा किया। बिना संघ की हरी झंडी के मोदी इतना बड़ा कदम उठा ही नहीं सकते थे।
एक तीर से साधे कई निशाने
आडवाणी तो एक बहाना हैं। इसके बहाने कई तीर चले हैं। संघ कई दिनों से भाजपा को हिन्‍दुत्‍व की पटरी पर लाना चाह रहा था पर वाजपेयी के रहते भाजपा में यह सब संभव नहीं हो पा रहा था। अब तय है कि भाजपा का रिमोट कंन्‍टोल नागपुर केसरिया झंडे तले पहुंच गया है।
गुजरात में भाजपा में चल रही असंतुष्‍ट गतिविधियों के पीछे आडवाणी विरोधियों की शह को माना जा रहा है। भाजपा पर अपना बर्चस्‍व कामम करने के लिए मौजूदा हाईकमान राजनाथसिंह आडवाणी को कमजोर करने पर लगे हुए हैं। पिछले दिनों वे यह भी कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवारों की दौड़ मे वे भी शामिल हैं।
गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी आडवाणी की परछाई की तरह हैं। अगर मोदी कमजोर होते हैं या गुजरात में मोदी हारते हैं तो इससे आडवाणी कमजोर होंगे और यही पार्टी आलाकमान चाहते हैं। इसी चाल को भांपते हुए आडवाणी और मोदी पिछले कई दिनों से संघ पर दबाव बनाए हुए थे कि आडवाणीजी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित किया जाए। पहले दौर में तो आडवाणी और मोदी ने बाजी मार ली है। अब सारा गणित गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर है। अगर मोदी जीतते है तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और दस राज्‍यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का तुरुफ का इक्‍का हिन्‍दुत्‍व और विकास का घालमेल ही होगा।
तब तक लालजी इसी बात से संतोष कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री न सही प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार ही सही।

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