मंगलवार, 17 सितंबर 2013

अग्रि-5 मिसाइल की क्षमता 5 नहीं 8 हजार किलोमीटर, भारत दस हजार किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइलें बनाने में सक्षम



डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने इंटर टरकांटिनेन्टल बेलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम )अग्रि-5 मिसाइल के दूसरे सफल परीक्षण के एक दिन बाद घोषणा की कि इस मिसाइल की रेंज आठ हजार किलोमीटर तक बढ़ाई जा सकती है। साथ ही वह दस हजार किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल बनाने में भी सक्षम है। मैंने फेसबुक पर लिखी अपनी पोस्ट में इसकी जानकारी मिसाइल के सफलतापूर्वक परीक्षण करने के दिन ही दे दी थी इस मिसाइल की रेंज आठ हजार किलोमीटर तक कैसे बढ़ाई जा सकती है। परीक्षण के एक ही दिन डीआडीओ जिसका कि हिन्दी नाम है रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने इस पर अपनी मोहर लगा दी। डीआरडीओ देश में मिसाइलों के क्षेत्र में अनुसंधान और परीक्षण का काम करने वाली संस्था है। दस हजार किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल का अर्थ है कि सिर्फ वीजिंग ही नहीं वाशिंगटन भी हमारी मिसाइलों की जद में होगा। इस मिसाइल से सबसे ज्यादा चिंतित चीन है। कारण कि अब चीन  के किसी भी हिस्से में हमारी मिसाइलें मार कर सकें गी। इस सफलता पर डीआडीओ के वैज्ञानिकों को बधाई।

भारत ने खींचा अग्रिपथ

चीन, रूस, अफ्रीका और अमेरिका भी अब भारत की मिसाइलों की जद में 


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भारत ने दुनिया के सामने अपना अग्रिपथ खींच दिया। आज सतह से सतह पर मार करने वाली इंटरकांटिनेन्टल बेलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम )अग्रि-5 का दूसरा सफल परीक्षण किया। दो और परीक्षणों के बाद इसे सेना को सौंप दिया जाएगा। अभी इसकी रेंज पांच हजार किलोमीटर बताई जा रही है। दरससल इसकी रेंज सात हजार किलोमीटर के आस- पास है। चीन के आशंका जताई है इसकी रेंज 8 हजार किलोमीटर है । 5 हजार किलोमीटर की रेंज से चीन का पूरा और अफ्रीका का आधा हिस्सा भारतीय परमाणु मिसाइलों की जद में आ रहा है। भारत जैसे ही इसकी रेंज को आठ हजार किलोमीटर  करेगा अमेरिका, यूरोप और पूरा अफ्रीका इसकी जद में आ जाएगा। इसके बाद अग्रि-6 की योजना है। इसकी रेंज 8 से 10 हजार किलोमीटर है। अग्रि-5 को रेल के डिब्बेनुमा लांचर से कहीं से छोड़ा जा कसता है।
 पांच हजार किलोमीटर रेंज का अर्थ है - अगर हम इस पर डेढ़ टन वजनी परमाणु वारहैड लगाकर छोड़ेगे तो यह पांच हजार किलोमीटर मार करेगी।
सात हजार किलोमीटर रेंज का अर्थ है - अगर हम इस पर डेढ़ टन के बजाय एक टन वजनी परमाणु वारहैड लगाकर छोड़ेगे तो यह साढ़े 6 से 8 हजार किलोमीटर मार कर सकती है।
दस हजार किलोमीटर रेंज का अर्थ है - क्रायोजिक इंजन की क्षमता बढ़ाकर इसकी रेंज 8 से 12 हजार किलोमीटर तक की जा कसती है।

मिसाइल कार्यक्रम लेटलतीफी का शिकार

दरअसल आईसीबीएम बनाने में भारत पहले ही काफी पिछड़ गया था। पहली बार अग्रि मिसाइल का परीक्षण राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीकाल में 198९ में ही हो गया था। अमेरिकी  दबाव  के चलते इसके बाकी परीक्षण नहीं हो पाए थे। उस समय अमेरिका इस मिसाइल से काफी परेशान था। कारण कि हिन्द महासागर स्थित उसका सैन्य ठिकाना डियोगार्शिया इस मिसाइल की जद में आ गया। इसके बाद पीबी नरसिंहाराव के प्रधानमंत्री रहते भारत के परमाणु परीक्षण की खबर अमेरिकी अखबार में लीक हो गई थी।  इसके बाद परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम ठंडे बस्ते में चला गया। कुछ दिनों  बाद अग्रि और पृथ्वी मिसाइलों के सामान्य परीक्षण होते रहे। ये 250 से 3000 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम थीं।

आईसीबीएम का नाम सूर्या से बदलकर अग्रि-5

भारत आईसीबीएम मिसाइल का परीक्षण वर्ष 2000 में ही हो जाना था लेकिन इसके लिए हमें लंबा इंतजार करना पड़ा। पहले इसका नाम  सूर्या रखा गया था। एनडीए के शासनकाल में भारत की आवश्यकताओं के हिसाब से मिसाइल कार्यक्रम में परिवर्तन किया गया।
संसद पर हमले के बाद भारत की फौज पाकिस्तान की सीमा पर डटी हुई थी। उस समय हमारे ध्यान में आया कि पाकिस्तान से लडऩे के लिए हमें 250 से हजार किलोमीटर मार करने वाली ही मिसाइलें की चाहिए। उस समय हमारे पास इस रेंज की मिसाइलों की कमी थी। इसी कमजोरी के चलते ही  भारत ने पाकिस्तान पर हमला नहीं किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने रूस से बात कर आनन- फानन में इस रेंज की मिसाइलें मंगवाई। इस आशंका के साथ कि अगर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया तो फिर क्या करेंगे। ये मिसाइलें काफी महंगी आईं थीं। सीएजी की रिपोर्ट में भी इस खरीदी को लेकर आपत्ति आई थी।
इसके बाद  भारत ने मिसाइल कार्यक्रम में परिवर्तन किया। अग्रि को परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बनाया। इसी कड़ी में मिसाइल अग्रि-1 का फिर से परीक्षण किया गया। इसकी विशेषता यह भी थी इसे रेल के डिब्बेनुमा लांचर से कहीं से छोड़ा जा कसता है। सारी मिसाइलों को पुन: नई तकनीकी तौर पर समक्ष बनाया। पहले मिसाइलों को पाकिस्तान के खतरे के हिसाब से तैयार किया। चीन का खतरा अब सिर उठा रहा है तो भारत ने अग्रि-5 का दूसरा परीक्षण किया। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की असफलता से भी आईसीबीएम प्रोजेक्ट में देरी हुई है।
यूपीए सरकार को पिछले नौ सालों से सत्ता में है और वह भी इस मामले में गंभीर नहीं दिखती। होना तो यह चाहिए था कि अब तक हमारी सेना के मिसाइल दस्ते को यह मिसाइल मिल जानी थी पर लगता है कि इसके लिए हमें तीन-चार साल और इंतजार करना पड़ेगा। चलो देर से ही सही रास्ते पर आए पर आए तो। अब मिसाइल कार्यक्रम में भारत कोई भी देरी बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं  है। फोटो और वीडियों डीआरडीओ के सौजन्य से। 

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बारे में
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के अधीन काम करता है| डीआरडीओ रक्षा प्रणालियों के डिजाइन एवं विकास के लिए  समर्पित है और तीनो रक्षा सेवाओं की अभिव्यक्त गुणात्मक आवश्यकताओं के अनुसार  विश्व स्तर के हथियार प्रणालियों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है |डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्रों, संग्राम वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग प्रणालियों, मिसाइल, सामग्री,  नौसेना प्रणालियों, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है | डीआरडीओ अत्याधुनिक आयुध प्रौद्योगिकी की आवश्यकतापूर्ति के साथ-साथ समाज के लिए स्पिनऑफ लाभ देकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहा है|  
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