शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

राष्ट्रपति के रूख से राहुल बने कांग्रेस के एंग्री यंग मैन


  1. राष्ट्रपति अध्यादेश को वापस करें इससे पहले ही कांग्रेस ने इशारा समझते हुए राहुल के माध्यम से अध्यादेश वापस लेने की भूमिका बना दी, लेकिन  सवाल यह है कि राहुल इतने दिन चुप क्यों थे
  2. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना हो तो वे आज बन जाएं पर इस पद की गरिमा का ख्याल रखें
  3. युवराज के जाने-अनजाने बयान से यह तय है कि यह मनमोहनसिंह की चला-चली की बेला है

मतौर पर राष्ट्रपति के पद को शोभा का सिंहासन माना जाता है शक्ति का नहीं। वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने साबित कर दिया है कि अगर संविधान का सही ज्ञान और नीयत साफ हो राष्ट्रपति के एक इशारे पर सरकार दंडवत करती नजर आती है। यही कारण है कि सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए अध्यादेश को कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने शुक्रवार को बकवास और फाडक़र फैंकने लायक बताकर खारिज कर दिया। 
इस अध्यादेश पर भाजपा के विरोध के बाद जब राष्ट्रपति ने गुरूवार शाम को प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की अनुपस्थिति में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, कानून मंत्री कपिल सिब्बल और संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ को तलब कर पूछा था कि ऐसी क्या आपातकालीन परिस्थितियां हैं जिनके चलते  अध्यादेश लाना जरूरी है। साथ में उन्होंने अध्यादेश के साथ एटार्नी जनरल और सोलिसिटर जनरल की कानून राय न भेजने पर भी नाराजगी जताई थी। तब कांग्रेस को लगा कि राष्ट्रपति अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर अध्यादेश के मसौदे को वापस भेज सक ते हैं। किरकिरी से बचने के लिए कांग्रेस ने रातों रात दिल्ली में प्रेस क्लब बुक किया और वहां  राहुल गांधी कांग्रेस की  प्रेस कान्फ्रेंस में अचानक प्रकट हो गए। 
 प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में डेमेज कंट्रोल के राहुल से बेहतर और कोई विकल्प कांग्रेस के पास था ही नहीं। मसकद दो थे। पहला यह कि क्रेडिट राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और विपक्ष को मिले और दूसरा यह कि लाने के बाद इसे रूकवाने का क्रेडिट भी कांग्रेस को मिले। बकवास और फाडऩे लायक जैसे शब्दों के प्रयोग कर राहुल गांधी ने अपनी सरकार और कोरगु्रप को सकते में ला दिया। प्रधानमंत्री पद की गरिमा को कम किया सो अलग।अब प्रधानमंत्री के अमेरिका  से आने के बाद कैबिनेट इसे वापस लेने का फैसला कर सकती है।

 राहुल के इस बयान से कुछ यक्ष प्रश्न उठ रहे हैं-

१. सवाल यह है कि जब दो बार कैबिनेट और एक बार कांग्रेस कोरगु्रप में अध्यादेश के मसौदे पर चर्चा हुई थी तब राहुल गांधी चुप क्यों रहे।
२. इससे पहले राज्यसभा में बहस के बाद संसद की समिति के पास बिल का मसौदा भेजा गया था तब क्या राहुल को इसके बारे में पता नहीं था।
३. इस अध्यादेश के मसौदे के बारे मेंर राहुल गांधी को विश्वास में नहीं लिया गया हो ऐसा भी नहीं लगता। जिस विषय पर सभी विपक्षी दलों को विश्वास में लिया गया हो उसके बारे में राहुल गांधी को नहीं बताया गया हो ऐसा होने की संभावना नहीं के बराबर है। आखिर कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं वे।
४. पूरी कैबिनेट के फैसले को नानसेंस या बकवास और फाडक़र फैंकने लायक कहकर प्रधानमंत्री पद की संवैधानिक गरिमा भी गिराई। क्या उन्होंने इसके साइड इफैक्ट पर विचार किया था।
५. जब प्रधानमंत्री देश में न हों और उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति बोराक ओबामा से बातचीत होने वाली हो ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संकेत देना कि पावर सेंटर कहीं और है प्रधानमंत्री के सर्वोच्य संवैधानिक पद की अवमानना नहीं है।
६. कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरूण जेटली के राष्ट्रपति के समक्ष जताए गए विरोध के बाद कांग्रेस ने भी अपना सुर बदल लिया। पहले सर्वदलीय बैठक में भाजपा इस अध्यादेश के समर्थन में थी लेकिन आरएसएस की नाराजगी के चलते भाजपा भी इस अध्यादेश के विरोध में आ गई।
७. दोपहर में 1 बजे अपनी ही पार्टी की केबिनेट के फैसले को बकवास बताने वाले राहुल गांधी ने रात को 12  बजे प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर कहा कि उनकी प्रतिक्रिया का मसकद उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। यानी कहीं न कहीं डेमेज कंट्रोल की प्रक्रिया भी चल रही है। उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने शुक्रवार शाम कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से बात की थी। यानी बयान देने से पहले राहुल गांधी ने  इसके साइड इफेक्ट के बारे में नहीं सोचा था।
८. राहुल गांधी चाहे तो आज मनमोहसिंह को हटाकर प्रधानमंत्री बन सकते हैं। बन जाएं, लेकिन जब तक नहीं बनते तब तक इस पद की मर्यादा को नानसेंस जैसे शब्दों से कम नहीं करें। उनके इस बयान ने जाने-अनजाने ही यह तय कर दिया है कि यह मनमोहनसिह की चलाचली की बेला है।
९. गैंग रेप, अन्ना आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं के दौरान चुप्पी साधने के राहुल पर आरोप लगते रहे हैं। कहीं दागी जनप्रतिनिधियों के मुद्दे पर इन आरोपों को धोने के मकसद से तो राहुल ने कहीं यह बयान नहीं दिया।
१०. अपराधी जनप्रतिनिधियों के मुद्दे पर मध्यम वर्ग की नाराजगी तो कहीं इसके मूल में नहीं है। कारण कि राहुल को अपनी यूथ ब्रिगेड से लगातार इस आशय का फीडबैक मिल रहा था।


जल्दबाजी इसलिए 

दरअसल राज्यसभा में इसी बिल को सदस्यों के विरोध के चलते स्थाई समिति को भेज दिया है और वहां समय लग सकता है इसलिए कांग्रेस कोरग्रुप, और विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों की आमराय के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इस पर अध्यादेश लाने का फैसला किया  और उसे पास कर राष्ट्रपति को भेज दिया। दरअसल 150 से अधिक सांसदों और 1300 विधायकों पर न्यायालयों में आपराधिक प्रकरण चल रहे हैं। चारा घोटाले पर लालू यादव पर 30 तारीख को फैसला आना है। ए राजा और कनिमोजी जैसे कई पूर्व मंत्री दागी हैं।

क्या है इस अध्यादेश में

इस अध्यादेश में लिखा है कि दो साल से अधिक की सजा मिलने पर सांसदों और विधायकों को तीन माह में अपील करने का अधिकार मिलेगा। उनकी सदस्यता पर आंच नहीं आएगी। यानी वे माननीस सदस्य बने रहेंगे। इस दौरान उन्हें भत्ता और संसद या विधानसभाओं में वोटिंग का अधिकार नहीं रहेगा। इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून में ये संशोधन प्रस्तावित हैं। 

यह है राष्ट्रपति की अध्यादेश लाने की शक्ति

राष्टपति ने संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्टपति अध्यादेश जारी कर सकता है। लेकिन ऐसा वह तभी कर सकता है जब संसद का सत्र न चल रहा हो और उसे इस बात का  समाधान हो जाए कि वर्तमान परिस्थितियों में कार्रवाई करने के लिए ऐसा करना जरूरी हो। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में दामिनी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार कांड के खिलाफ देशव्यापी नाराजगी के बाद देश के आपराधिक कानून में बदलाव के लिए राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी किया था। बाद में संसद ने इसे पास कर कानून बना दिया।

देश में कानून पास कराने के दो ही तरीके हैं-

1 सत्र के दौरान संसद के दोनों सदन कानून को पास कर दे और फिर राष्ट्रपति उसे स्वीकृत कर दें।
2 पहले राष्ट्रपति अध्यादेश से एक कानून जारी कर दें और फिर संसद के दोनों सदन उसे पास कर दे। ऐसा करने के लिए राष्ट्रपति का संविधान के अनुच्छेद- 123  के तहत संतुष्ट होना जरूरी है।

तो राष्ट्रपति कर सकत हैं वीटो का प्रयोग

 अगर राष्ट्रपति के संकेत के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल इसे वापस  नहीं लेता है तो राष्ट्रपति इसे अपने वीटो पावर का इस्तेमाल वापस कर सकता हैं। अगर इसके बाद भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल को इस अध्यादेश के मसौदे को पास करवाना हो तो कानून के रूप उसे संसद से पारित करवाकर राष्ट्रपति को भेजना होगा।  राष्ट्रपति एक बार और इसे वापस कर सकता है । इसके बाद संसद से फिर उसे पारित कर दिया तो वह कानून मान लिया जाएगा। फिर राष्ट्रपति की आपत्ति की कोई कीमत नहीं है।
 

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