शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

जीरो वोट व्यवस्था तो पहले से लागू है सुप्रीम कोर्ट ने उसे सिर्फ मशीन मे लाने की व्यवस्था करने को कहा है




 सुप्रीम कोर्ट ने वोटिंग मशीन में ' इनमें से कोई नहीं ' का विकल्प देने केन्द्र सरकार और  केन्द्रीय निर्वाचन आयोग आदेश दिया है। वास्तव में यह  राइट टू रिजेक्ट की सौगात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में तथ्यों में कुछ भी नया नहीं है वरन दी गई व्यवस्था में नयापन है। कारण कि जीरो या नकारात्मक  वोट की व्यवस्था इलेक्शन रूल में पहले से ही मौजूद  है। यह बात और है कि इसके बारे में कम ही लोगों को पता था। पिछले  दस साल से प्रिंट मीडिया लगातार इसके बारे में छाप रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें जो खास बात की है वह यह कि इस प्रावधान को वोटिंग मशीन के स्विच के रूप में लाने को कहा है। इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे पता हो और अधिकारी जीरो वोट की खानापूर्ति में  पहले की तरह टालमटोल न करें। वोटिंग मशीन में यह आप्शन आने से वोटो की गिनती में भी पता चल जाएगा कि कितने लोगों ने ' कोई नहीं ' का विकल्प चुना है।
देश में पहले से ही लागू है इस बारे में कानून

                        Conduct of Elections Rules, 1961
(Statutory Rules and Order)

49-O. Elector deciding not to vote.—If an elector, after his electoral roll number has been duly entered in the register of voters in Form 17A and has put his signature or thumb impression thereon as required under sub-rule
(1) of rule 49L, decided not to record his vote, a remark to this effect shall be made against the said entry in Form
17A by the presiding officer and the signature or thumb impression of the elector shall be obtained against such
remark.

यह है कानून

 इलेक्शन रूल जनप्रतिनिधित्व कानून  की धारा ४९/ओ के अनुसार अगर चुनाव में खड़े किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते हैं तो आप मतदान केन्द्र के पीठासीन अधिकारी से फार्म १७ ए मांगकर उसमें अपनी नापसंदगी जता सकते हैं। इसकी बाकायदा रजिस्टर में इंट्री का प्रावधान है। इस पर अभी आपको हस्ताक्षर करने होते हैं या अंगूठे का निशाना लगाना होता  है।  इसे जीरो वोट भी नाम दिया गया है।

परेशानी यह थी

 इस नियम का ज्यादातर लोगों को पता नहीं था। सरकार ने भी इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया। कई बार चुनाव बूथ के पीठासीन अधिकारी भी फार्म और रजिस्टर देने में आनाकानी करते थे।

अब यह होगा

 सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलेक्शन रूल ४९/ओ, फार्म १७ ए और रजिस्टर के बजाय वोटिंग मशीन के एक स्विच में शामिल होगा। इसलिए इसका आप बखूबी इस्तेमाल कर सकेंगे। यानी  कानून के प्रावधान पर ढंकी नहीं पता होने की चादर हट गई है।

 


यह सर्वोच्य अदालत ने 


 सर्वोच्य न्यायालय के  मुख्य न्यायमूर्ति पी सताशिवम, न्यायमूर्ति  रंजन गोगोई  और न्यायमूर्ति रंजनप्रकाश  देसाई की पीठ ने शुक्रवार को दिए इस फैसले में कहा कि लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के लिए मतदाताओं के पास इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन या मतपत्र नन आद न अबव या इनमें से कोई नहीं का विकल्प होना चाहिए। इस विकल्प के जरिए सभी मतदाताओं को खारिज करने  का जीरो या नकारात्मक  मतदान करने का अधिकार मतदाताओं के पास होना चाहिए। पीठ का मानना था कि  नकारात्मक मतदान की व्यवस्था से ही राजनीति दल अपने उम्मीदवार के चयन में जनता की भावनाओं का भी ध्यान रखेंगे। ऐसा करने से ही चुनाव व्यवस्था में धीरे-धीरे बदलाव आएगा। पीठ ने निर्वाचन आयोग को आदेश दिए कि वे ईवीएम मशीन में नन आफ द अबव के एनओटी का अतिरिक्त बटन और मतपत्र में ही ऐसा विकल्प देने के निर्देश दिए। साथ ही पीठ ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिए कि वह इस संबंध में आर्थिक और व्यवस्थागत संसाधन जुटाने में निर्वाचन आयोग को पूरा सहयोग प्रदान करे।












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