शनिवार, 28 सितंबर 2013

मनमोहन के पास दो लेकिन कांग्रेस के पास एक ही है विकल्प


दागी जनप्रतिनिधियों  को बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश की कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जिन शब्दों में किरकिरी की है उसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अब प्रधानमंत्री क्या करेंगे या उनके पास क्या विकल्प हैं। उनके पास दो ही विकल्प हैं। पहला या तो इस्तीफा दे दें अथवा दूसरा अध्यादेश को वापस लेते हुए राहुल गांधी की बात मान लें। मनमोहन के पास भले ही दो विकल्प हों पर कांग्रेस के पास एक ही विकल्प है। वह यह कि कैसे भी हो मनमोहन सिहं चुनाव तक पद पर बने रहें और कांग्रेस की असफताओं का दोष अपने सिर पर झेलते रहे। 

मनमोहन के विकल्प
@विकल्प 1 - प्रधानमंत्री विदेश से आते ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दें।
@क्या ऐसा होगा - ऐसा होगा इसकी संभावनाएं कम ही नजर आ रही हैं। कारण कि इससे पहले भी इससे भी कई विकट परिस्थितियां आईं थी लेकिन मनमोहन ने मौन रहकर काम करते रहे। अब चुनाव को आठ से दस महीने का समय बचा है। ऐसे में चुनाव तक पद पर बने रहें।
@अगर ऐसा हो गया तो- अगर प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं तो कांग्रेस की स्थिति खराब हो जाएगा। फिलहाल कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है तो उनका स्थान ले सके। राहुल प्रधानमंत्री बनकर यूपीए-2 सरकार के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेकर जनता के बीच जाते हैं तो उनकी और कांग्रेस दोनों की स्थिति खराब होगी। या कांग्रेस समय से पहले लोकसभा भंग करवाकर चुनाव का ऐलान करे। प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार संजय बारू ने शुक्रवार को यह कहा था कि अब प्रधानमंत्री को भारत आते ही इस्तीफा दे देना चाहिए। दरअसल यह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक इशारा था कि वे स्थिति को संभाल लें। सिर्फ इसी आशंका के चहते कि कहीं राहुल ने नानसेंस उर्फ बकवास वाले बयान से आहत होकर कहीं प्रधानमंत्री इस्तीफा न दे दे सोनिया गांधी ने राहुल से प्रधानमंत्री के नाम चिट्ठी लिखवाई। इसे डेमेज कंट्रोल की ही कवायद माना जा रहा है।
@निष्कर्ष: प्रधानमंत्री के रूख को देखकर कहा जा सकता है कि उनके इस्तीफा देने की संभावना नहीं है अगर उन्हें इस्तीफा देना ही होता वे न्यूयार्क से ही इस्तीफ फैक्स कर देते। दूसरा कांग्रेस फिलहाल उनके इस्तीफे के बोझ को ढोने की स्थिति में नहीं है। कारण कि इस्तीफे के बोझ में उनके युवराज का भविष्य दब जाएगा। कांग्रेस समय से पूर्व भी चुनाव झेलने की स्थिति में नहीं है पर यह तय है कि प्रधानमंत्री के रूप में अब मनमोहन की पारी का अंतिम अंतिम ओवर आ चुका है। उनकी बिदाई तय है। यानी राहुल के नेतृत्व के लिए तैयार हैं।
@विकल्प 2 - प्रधानमंत्री विदेश से आते ही केबिनेट और कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक बुलवाकर इस अध्यादेश पर विचार करें।
@क्या ऐसा होगा - ऐसा ही होने की संभावना अधिक है। इसमें भी दो विकल्प हैं। पहला मनमोहनसिंह विदेश से ही आते ही केबिनेट की बैठक में इस पर विचार कर खुद ही इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास से वापस मंगवाने का प्रस्ताव पारित करवा सकते हैं। दूसरा पहले कांग्रेस कोरग्रुप की बैठक में राय बनाकर अथवा सोनिया गांधी से चर्चा कर उसके अनुसार कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर अध्यादेश को वापस मंगवा सकते हैं।
@अगर ऐसा हो गया तो- प्रधानमंत्री इसमें जो कुछ भी करेंगे वह कांग्रेस कोरग्रुप के बिनाह पर ही होगा। पहले भी वे अध्यादेश कांग्रेस कोरग्रुप और प्रमुख मंत्रियों की सलाह के बाद ही लाए थे। अब यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि सामूहिक फैसले को समीक्षा के बाद बदला जा रहा है।
@निष्कर्ष: इससे प्रधानमंत्री की गरिमा कम होगी। हो सकता है कि उनकी नीतियों पर और भी कांग्रेस संगठन की ओर से प्रहार किए जाएं और उन्हें अंतिम ओवर तक टिके रहना है। इसका मतलब यह है कि अब कांग्रेस में युवराज कहेंगे वही सही होगा। अब युवराज के बयान से कांग्रेस इतना आगे निकल आई है कि अब उसके पास अध्यादेश को वापस लेने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता बचा ही नहीं है।

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